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भारत में यहां है दामादों का गांव, 400 परिवार…घरवाली चलाती है घर
यूपी (UP) का पुरवा गांव कई मायनों में सामाजिक दायरों को तोड़ने वाला है। ये दामादों का गांव है। चौंक गए ना, लेकिन यही हकीकत है। परंपरा कहिए या महिलाओं की शक्ति। शादी (Marriage) के बाद पतियों के यहां आकर बसने की रवायत ऐसी चली कि अब 400 परिवारों की यही कहानी (Story) है। शादी होने के बाद बेटों को ब्याह कर बेटियां यहां पूरा परिवार चला रही हैं। इस गांव में रहने वाले अधिकांश लोग ऐसे हैं जो बाहरी है, जिन्होंने शादी के बाद से ही गांव में डेरा जमा लिया। ससुराल के बंधनों से आजाद यहां विवाहिता पति (Husbend) के साथ बराबरी से रहकर हर तरह से उसकी मदद करती हैं।
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70 से लेकर 25 साल तक के दामाद
इस गांव (Village) में रहने वाले पुरुषों के साथ ही गांव की महिलाएं भी परिवार चलाने में पति की मदद करती है। इसके लिए वह घर में बीड़ी बनाने के काम का करती है। इससे होने वाली आय को वह परिवार के भरण पोषण में खर्च करती है। यह सिलसिला गांव में लिए नया नहीं है। दशकों से दामादों ने यहां परिवार बसा रखा है। इस गांव में 70 साल से लेकर 25 साल की आयु वर्ग के दामाद परिवार के साथ खुशी.खुशी रहते हैं।
महिला को है बराबरी का हक
गांव की विशेषता ये है कि बेटियों (Duaghters)को बेटों के बराबर शिक्षा व अन्य सुविधाएं दी जाती हैं। इस गांव में बेटियां हर वो काम करती हैं, जो बेटे कर सकते हैं। इन पर किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं है। 20 साल पहले पति के साथ गांव में रहने के लिए आई यासमीन बेगम की मानें तो ससुराल में कितनी भी आजादी हो, लेकिन ससुराल में कुछ न कुछ बंधन तो होता ही है। यहां पति के साथ रहते हुए वह अपनी मर्जी से रोजगार भी कर पा रही हैं।
यहां दामादों की है कई पीढ़ियां
यहां कुछ परिवार तो ऐसे हैं, जहां ससुर भी यहां घर जमाई बनकर आए थे। गांव के संतोष कुमार की मानें तो उसके ससुर रामखेलावन ने गांव की बेटी प्यारी हेला के साथ शादी कर ली। उसके बाद यहां रहने लगे। वह भी उनकी बेटी चंपा हेला के साथ शादी के बाद गांव में बस गए थे।