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रूटस्टॉक के पौधों ने बदली सेब के बागवानों की किस्मत, कम क्षेत्र में अधिक पैदावार का मिल रहा लाभ
मंडी। हिमाचल प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद में बागवानी का अहम योगदान है। इस योगदान को और ज्यादा बढ़ाने की दिशा में केंद्र और प्रदेश सरकार लगातार प्रयासरत हैं। हिमाचल सरकार (Himachal Government) की बागवानी विकास परियोजना ने बागवानों की तकदीर बदलकर रख दी है। इस परियोजना से बागवानों की आय हर हाल में दोगुनी हो रही है। नई तकनीक का इस्तेमाल करके बागवान, बाग-बाग नजर आ रहे हैं।
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बता दें कि वर्ष 2015-16 में शुरू हुई विश्व बैंक द्वारा प्रायोजित हिमाचल प्रदेश बागवानी विकास परियोजना के तहत बागवानों को रूटस्टॉक प्रणाली (Root Stock Technique) के साथ जोड़ा गया। जिसके बाद बागवानों ने सेब उत्पादन की पुरानी तकनीक से किनारी करके रूटस्टॉक प्रणाली को अपनाया, जिसके अब सार्थक परिणाम सामने आने लग गए हैं। मंडी जिला की सराजघाटी में काफी बड़े पैमाने पर सेब उत्पादन होता है।
घाटी के बगस्याड़ गांव के बागवानों ने बताया कि पुरानी तकनीक से उन्हें उतना मुनाफा नहीं होता था, जितना रूटस्टॉक प्रणाली से हो रहा है। कम भूमि पर अधिक पौधे लग पा रहे हैं और अच्छी फसल प्राप्त हो रही है, जिसकी बाजारों में भारी डिमांड है। यहीं नहीं, सरकार बागवानों को पॉली हाउस लगाने, सिंचाई सुविधा देने, एंटी हेल नेट लगाने और कीटनाशकों की खरीद के लिए भी भारी सब्सिडी प्रदान कर रही है। बागवानों का कहना है कि अगर ज्यादा मुनाफा ना भी हुआ तो पहले के मुकाबले दोगुना मुनाफा तो हर हाल में होना ही है।
वहीं, उद्यान विभाग के जिला विषयवाद विशेषज्ञ डॉ. नरदेव ठाकुर ने बताया कि हिमाचल में प्रति हेक्टेयर 4 या 5 मीट्रिक टन उत्पादन ही होता था। जबकि, विदेशों में रूटस्टॉक तकनीक से प्रति हेक्टेयर 50 से 60 मीट्रिक टन उत्पादन किया जाता है। इस उत्पादन को यहां बढ़ाने के उद्देश्य से ही केंद्र और राज्य सरकार ने बागवानी विकास परियोजना की शुरूआत की है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2015-16 से लेकर अब तक जिला भर के 1771 बागवानों को रूटस्टॉक और नई तकनीक के 91222 पौधे मुहैया करवाए जा चुके हैं। इस परियोजना के तहत मंडी जिला के लिए 200 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान रखा गया है।
उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश बागवानी विकास परियोजना सिर्फ सेब के बागवानों के लिए ही नहीं बल्कि अन्य प्रकार का फलोत्पादन करने वाले बागवानों के लिए भी है। इसके माध्यम से बागवानों को रूटस्टॉक तकनीक के साथ जोड़कर कम लागत में अधिक मुनाफा देने की दिशा में कार्य किया जा रहा है।
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