-
Advertisement
जब रावण ने अभिमान में आकर उठा दिया पूरा कैलाश तो जानिए क्या हुआ
रावण को दशानन भी बोला जाता है। वहीं रावण (Ravan) परमज्ञानी था और उसे सभी वेदों का भी ज्ञान था। इसके साथ ही वह सबसे बड़ा शिवभक्त भी था। मगर उसने खुद को सर्वशक्तिमान मान लिया और उसे अभिमान भी हो गया। मगर विधाता का यह नियम है कि अभिमान किसी का भी सदा बरकरार नहीं रहा और एक दिन टूट जाता है। रावण ने एक बार तो अपनी शक्ति से आवेश में आकर भगवान शिव (Lord Shiva) का सिंहासन अर्थात संपूर्ण कैलाश पर्वत को भी उठाने का प्रयास कर डाला। इस कारण समस्त जगत भयभीत हो उठा। एक बार रावण ने मन में यह ठान लिया कि वह भोलेशंकर से मनचाहा वरदान हासिल करेगा। वह कैलाश पर्वत पर तपस्या में लीन हो गया और घोर तपस्या (Penance) करता रहा। मगर भोलेनाथ प्रसन्न नहीं हुए। तब उसने अपने शीश काट-काटकर उनके चरणों में अर्पित करना शुरू कर दिए। ऐसा करते-करते उसने अपने दस सिर शिव को अर्पित कर दिए। जैसे ही वह दसवां सिर चढ़ाने लगा तो भगवान शिव वहां प्रकट हो गए और उसे मनोवांछित वरदान मांगने के लिए कहा।
यह भी पढ़ें:पौष माह में इस प्रकार करें सूर्यदेव को अर्घ्य, बढ़ जाएगा यश
इस पर रावण ने कहा कि नाथ मुझे ऐसा बल प्रदान करो जो किसी दूसरे के पास ना हो। इसके साथ जो शीश मैंने आपको अर्पित किए हैं वे भी पहले की तरह हो जाएं। भगवान शिव ने तथास्तु कह दिया और अंतर्ध्यान हो गए। तब रावण ने मन में सोचा कि मुझसे बड़ा बलशाली तो पूरी दुनिया में नहीं है। जैसे ही रावण को बल मिला तो देवता चिंतित हो उठे। उन्होंने इस समस्या का समाधान नारद जी (Narad Ji) से पूछा। तब नारद जी ने कहा कि चिंता मत करो। काम कठिन अवश्य है पर असंभव नहीं। इस पर देवता संतुष्ट हो गए। उधर रावण ने एक मदमस्त हाथी की भांति गर्जना कर लंका की ओर प्रस्थान करना शुरू कर दिया। नारद भी उसी रास्ते से निकले और उसके सामने आकर बोले-हे लंकापति आपका अद्भुत साहस बता रहा है कि आपको मनवांछित वरदान मिल चुका है। रावण ने गर्व से कहा कि आपने सत्य कहा। आज मैं बहुत ही प्रसन्न हूं और शिव भोलेनाथ से मुझे अतुल्य बल मिल गया है। तब नारद ने कहा कि भांग खाकर नशे में मस्त रहने वाले अघोरी की बातों में आप आप आ गए। उन्होंने नशे में वरदान दिया होगा। इसे आप सच भी मान बैठे। आप उस अघोरी के कहे पर यकीन ना करें। इस वरदान की सच्चाई जानने के लिए क्यों ना कैलाश पर्वत को उठाकर देख लें। रावण प्रसन्न होकर बोला वाह देवर्षि क्या युक्ति सुझाई है। महादेव का वरदान मिथ्या है या सत्य मैं अभी परख लेता हूं। नारद ने बोला तुरंत जाएं वरना रावण कैलाश पर्वत को उठाने लगाए कैलाश को हिलते.डुलते देख मा पार्वती समेत वहां रहने वाले सभी जन भयभीत हो गए परंतु भगवान शिव सारी बात समझ गए और क्रोध में भरकर बोले, इस घमंडी को अभी सबक सिखाता हूं। यह कहकर उन्होंने पैर के एक अंगूठे से कैलाश पर्वत को थोड़ा सा दबा दिया, जिससे रावण उसके नीचे दबकर छटपटाने लगा और शिवजी को शांत करने के लिए उनकी स्तुति करने लगा।