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PTA टीचर्स मामले में हाईकोर्ट की टिप्पणी: बेरोजगारों का खून चूस रही है सरकार
शिमला। हिमाचल प्रदेश के स्कूलों में सेवा दे रहे PTA टीचर्स (PTA Teachers) के एक मामले में सरकार की अपील को खारिज करते हुए हाईकोर्ट (Himachal High Court) ने बेहद तल्ख टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार (Himachal Govt) गरीब असहाय युवा बेरोजगारों (Poor Unemployed) का खून चूसकर पैसा बचाने की कोशिश कर रही है। बेरोजगार भी मजबूरी में सरकार की मनमानी शर्तों को मानने के लिए बाध्य हैं, क्योंकि इसी में उन्हें कमाई की आशा नजर आती है।
शोषण कर रही है सरकार
जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर और जस्टिस संदीप शर्मा की बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट ने राज्य के स्कूलों में नियमित शिक्षक (Regular Teachers) उपलब्ध कराने के बार-बार निर्देश देने के बावजूद सरकार उनका अनुपालन करने और रेग्यूलर टीचर नियुक्त करने में नाकाम रही है। इन हालात में PTA अपने बच्चों के भविष्य को बचाने के लिए शिक्षक नियुक्त करने को बाध्य हैं। कोर्ट ने पाया कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सेवारत PTA शिक्षक एक ही वर्ग के हैं। उनमें भेदभाव (Partiality) करना समझ से परे है। दोनों को समान उद्देश्यों के लिए नियुक्त किया जाता है और वे समान स्तर की जवाबदेही और जिम्मेदारी के साथ एक ही काम करते हैं। बेंच ने साफ कहा कि सरकार इन भेदभावपूर्ण नीतियों के जरिए शोषण (Exploitation) कर रही है।
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यह है मामला
हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य के सभी स्कूलों में सेवारत PTA शिक्षकों को अनुदान सहायता (Grant) प्रदान करने के लिए अभिभावक शिक्षक संघ नियम, 2006 को लागू किया था। हालांकि 27 अगस्त 2007 के पत्र के माध्यम से नगर निगमों, नगर पालिकाओं और नगर पंचायत के क्षेत्र में स्थित स्कूलों में सेवारत PTA शिक्षकों को इस लाभ से वंचित कर दिया था। जिसे हाईकोर्ट की एकल पीठ ने रद्द कर दिया था। राज्य सरकार ने इसके खिलाफ एसएलपी लगाई थी।
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