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उत्तराखंड की वादियों में खिले ब्रह्मकमल: जानिए क्यों खास है साल में सिर्फ एक बार खिलने वाला यह फूल
चमोली। उत्तराखंड (Uttarakhand) के चमोली जिले में बर्फबारी के साथ ब्रह्मकमल (Brahmakamal) भी खिलना शुरू हो गए हैं। साल में सिर्फ एक बार खिलने वाला यह फूल अब अक्टूबर महीने में भी अपनी खुशबू बिखेर रहा है। ब्रह्म कमल के खिलने का सही वक्त अगस्त का होता है। एक्सपर्ट भी यह चीज देखकर हैरान हैं। माना जा रहा है कि कोरोना संक्रमण के लिए बनी गाइडलाइन ने ब्रह्मकमल के लिए संजीवनी का काम किया है, जो इस दुर्लभ प्रजाति के लिए शुभ संकेत है।
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कोरोना काल के दौरान नंदीकुंड पांडवसेरा में लोगों की आवाजाही ना होने के कारण हजारों की संख्या में ब्रह्मकमल खिले हैं। ट्रेकिंग पर गए पर्यटक ब्रह्मकमल को परिपक्व होने से पहले ही तोड़ देते थे, जिससे उसका बीज नहीं फैल पाता था। इस बार फूल पूरी तरह से पक चुके हैं, और इसका बीज गिरने पर अगले वर्ष ब्रह्मकमल की पैदावार बढ़ने की उम्मीद है। तीर्थयात्रीयों के अधिक दोहन के चलते यह लुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है।
इस फूल की है धार्मिक और औषधीय विशेषता; जानें
जमीन पर खिलने वाले इस फूल की धार्मिक और औषधीय विशेषता है। प्राचीन मान्यता के अनुसार, ब्रह्म कमल को इसका नाम ब्रह्मदेव के नाम पर मिला है। इसका वैज्ञानिक नाम साउसिव्यूरिया ओबलावालाटा (Saussurea obvallata) है। ब्रह्मकमल एस्टेरेसी कुल का पौधा है। सामान्य कमल की तरह यह पानी में नहीं उगता, बल्कि जमीन पर 4 हजार मीटर से अधिक की ऊंचाई पर खिलता है। हालांकि तीर्थयात्रीयों के अधिक दोहन के चलते यह लुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है।
अब इसकी संख्या में लगभग 50 प्रतिशत से भी ज्यादा की कमी आ चुकी है। अल्सर और कैंसर रोग के उपचार में इसकी जड़ों से प्राप्त होने वाले तेल का उपयोग होने से यह औषधीय पौधा होने के साथ ही विशेष धार्मिक महत्व भी रखता है। शिव पूजन के साथ ही नंदादेवी पूजा में भी ब्रह्मकमल विशेष रूप से चढ़ाया जाता है।