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कैप्सूल अलग-अलग रंग का ना हो तो हो जाइए सावधान, यह वजह
Last Updated on March 15, 2023 by sintu kumar
हम सबको पता है कि दवाइयां (Medicines) जीवनदायिनी होती है। हर दवाई का रंग अलग-अलग होता है और स्वाद भी। अगर कैप्सूल वाली मेडिसन पर नजर दौड़ाई जाए तो आपने देखा होगा कि अन्य दवाई के मुकाबले इन कैप्सूलों में दो रंग (Colour) होते है और इनका आकार भी छोटा-बड़ा होता है। अब हम बताते हैं कि कैप्सूल के दो रंग क्यों होते हैं। ऐसा करने के पीछे भी एक वजह है। दरअसल इसके एक हिस्से को कंटेनर (Container) और दूसरे हिस्से को कैप कहा जाता है। इनकी मदद से इसमें दवा को स्टोर किया जाता है। यह तो आप समझ ही गए होंगे कि कंटेनर और कैप (Cap) को मिलाकर एक कैप्सूल बनता है। इसके कंटेनर वाले हिस्से को दवा स्टोर (Store) करने के लिए बनाया गया है और कैप को दवा गिरने से रोकने के लिए। इन दोनों के अंतर को बरकरार रखने के लिए ही इन दोनों पर अलग-अलग रंग चढ़ाया जाता है, ताकि ये समझा जा सके कि कंटेनर कौन सा है और कैप कौन सा है। कैप्सूल को बनाते समय कोई गड़बड़ी न हो, इसलिए इनका रंग अलग-अलग रखा जाता है। ऐसा करने से कैप्सूल की लागत भी बढ़ती है, लेकिन दवा तैयार करने में किसी तरह कि दिक्कत न आए, इसलिए कंपनियां कंटेनर और कैप का रंग अलग रखती हैं।
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हालांकि फार्मा कंपनियां कैप्सूल को बनाने के दौरान गड़बड़ी को रोकने के लिए ऐसा करती हैं, लेकिन इसका एक फायदा मरीजों को भी मिलता है, जैसे कैप्सूल के रंग के कारण वो दवा मरीजों को याद रहती है। मरीज (patient) को याद रहता है कि किस बीमारी में उसने किस रंग का कैप्सूल लिया था। कैप्सूल बना आखिर किस चीज का होता है, जो नुकसान नहीं पहुंचाता। इसे जिलेटिन और सेल्यूयोज दोनों तरह के पदार्थ से बनाया जा सकता है, लेकिन कई देशों में जिलेटिन से बने कैप्सूल पर बैन लगा हुआ है। भारत में भी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जिलेटिन की जगह सेल्यूलोज के कैप्सूल बनाने का आदेश दिया है।