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देश के सरकारी व प्राइवेट कर्मचारियों के लिए पिछले दो दिनों में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के दो बड़े फैसले आए हैं। हमारे देश में कई ऐसे कर्मचारी हैं जो ऐसे मामलों में कोर्ट कचहरी के चक्कर काटते रहते हैं। ये दोनों फैसले कर्मचारियों के हक (Employee Rights) से जुड़े हुए हैं।
सुप्रीम कोर्ट की ओर से कहा गया कि किसी मामले में कोई सूचना छिपाना, झूठी जानकारी देना और एफआईआर की जानकारी नहीं देने का मतलब ये नहीं है कि नौकरी देने वाला मनमाने ढंग से कर्मचारी को बर्खास्त कर सकता है। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा था कि कर्मचारी को अतिरिक्त भुगतान या इंक्रीमेंट गलती से किया गया तो उसके रिटायरमेंट के बाद उससे इस आधार पर वसूली नहीं की जा सकती कि ऐसा किसी गलती के कारण हुआ था।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को याचिकाकर्ता पवन कुमार, जो कि रेलवे सुरक्षा बल में कांस्टेबल के पद के लिए चुने गए थे की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई हुई। पवन की जब ट्रेनिंग शुरू हुई थी तो उसे इस आधार पर एक आदेश से हटा दिया गया कि कैंडिडेट ने यह खुलासा नहीं किया कि उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस व्यक्ति ने जानकारी को छिपाया है या गलत घोषणा की है, उसे सेवा में बनाए रखने की मांग करने का कोई अधिकार नहीं है, लेकिन कम से कम उसके साथ मनमाने ढंग से व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता की ओर से भरे गए सत्यापन फॉर्म के समय, उसके खिलाफ पहले से ही आपराधिक मामला दर्ज किया गया था। जबकि, शिकायतकर्ता ने अपना हलफनामा दायर किया था कि जिस शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज की गई थी वे गलतफहमी के कारण थी। पीठ ने कहा सेवा से हटाने का आदेश उपयुक्त नहीं है और इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ द्वारा पारित निर्णय सही नहीं है और ये रद्द करने योग्य है।
वहीं, इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार केरल के एक शिक्षक के मामले में फैसला सुनाया। मामला यह था कि शिक्षक ने साल 1973 में स्टडी लीव ली थी, लेकिन उन्हें इंक्रीमेंट देते समय उस अवकाश की अवधि पर विचार नहीं किया गया था। 24 साल बाद 1997 में उन्हें नोटिस जारी किया गया और 1999 में उनके रिटायर होने के बाद उनके खिलाफ वसूली की कार्यवाही शुरू की गई। शिक्षक इसके खिलाफ हाई कोर्ट गए, लेकिन वहां उन्हें कोई राहत नहीं मिली, जिसके बाद वे सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई सरकारी कर्मचारी, विशेष रूप से जो सेवा के निचले पायदान पर है, जो भी राशि प्राप्त करता है, उसे अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए खर्च करेगा। पीठ ने कहा कि लेकिन जहां कर्मचारी को पता है कि
प्राप्त भुगतान देय राशि से अधिक है या गलत भुगतान किया गया है या जहां गलत भुगतान का पता चला जल्दी ही चल गया है तो अदालत वसूली के खिलाफ राहत नहीं देगी।
बता दें कि जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने केरल के एक सरकारी शिक्षक के पक्ष में फैसला सुनाया जिसके खिलाफ राज्य की ओर से गलत तरीके से वेतन वृद्धि देने के लिए वसूली की कार्यवाही शुरू की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी 20 साल की कानूनी लड़ाई को समाप्त कर दिया, वह केरल हाईकोर्ट में केस हार हार गए थे।
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