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पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने से कैसे आम आदमी की जेब पर पड़ रहा असर, जानें
हमारे देश के कई राज्यों में पुरानी पेंशन योजना (Old Pension Scheme) लागू हो चुकी है। पुरानी पेंशन योजना लागू करने वाले राज्यों में हिमाचल प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, झारखंड और छत्तीसगढ़ शामिल है। अब जल्द ही इस सूची में कर्नाटक का नाम भी जुड़ जाएगा। हालांकि, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने पुरानी पेंशन योजना बहाल होने से देश की आर्थिक स्थिति खराब होने का अंदेशा जताया है।
बता दें कि राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश के बयान में देश की आर्थिक स्थिति की तुलना श्रीलंका, पाकिस्तान जैसे देशों से की है। उन्होंने ये तक कहा कि पुरानी पेंशन योजना लागू करने वाले राज्य कर्ज में डूब जाएंगे और एक समय ऐसा आएगा जब ऐसा करने से आर्थिक स्थिति खराब हो जाएगी।
बढ़ जाएगा करोड़ो रुपए का बोझ
उन्होंने कहा कि जिन पांच राज्यों ने पुरानी पेंशन योजना बहाल की है उनके सरकारी खजाने पर कुल मिलाकर 3 लाख करोड़ रुपए को बोझ बढ़ गया है।
ये है पुरानी पेंशन योजना
गौरतलब है कि पुरानी पेंशन योजना यानी OPS को 2004 में बंद कर दिया गया था। पुरानी पेंशन योजना के तहत केंद्र सरकार और राज्य सरकार के कर्मचारियों के लिए पेंशन अंतिम आहरित मूल वेतन का 50 प्रतिशत निर्धारित किया गया था। यानी सेवा के आखिरी दौर में जितना वेतन मिलता था उसका आधा प्रतिमाह रिटायरमेंट के बाद पेंशन के रूप में मिलता था।
मासिक भुगतान पर असर
बता दें कि अगर किसी रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी का सेवा में रहते हुए मासिक मूल वेतन दस हजार रुपए था तो उसे पांच हजार रुपए की पेंशन का आश्वासन दिया जाता था। साथ ही साथ सेवारत कर्मचारियों को सरकार द्वारा घोषित महंगाई भत्ते या डीए में बढ़ोतरी का असर पेंशन लेने वाले कर्मचारियों के मासिक भुगतान पर पड़ता था।
मिलती है इतनी पेंशन
ध्यान रहे कि अभी तक सरकार द्वारा भुगतान की जाने वाली न्यूनतम पेंशन 9 हजार रुपए और अधिकतम 62,500 रुपए प्रति माह है।
बंद हुई थी पुरानी पेंशन
जैसा कि हम जानते हैं कि केंद्र सरकार द्वारा हर साल बजट में पेंशन के लिए प्रावधान किया जाता है। जानकारी के अनुसार, पुरानी पेंशन योजना बंद करने का मुख्य कारण ये था कि पेंशन की देनदारी अनफंडेड रही। यानी आय की कोई जरिया नहीं था और भुगतान की राशि में लगातार इजाफा होता जा रहा था।
हालांकि, भविष्य में हर साल पेंशन का भुगतान कैसे किया जाएगा इस पर कोई स्पष्ट योजना नहीं थी। वहीं, एक तरफ पेंशन की देनदारियां बढ़ती जा रही थी और दूसरी तरफ हर साल पेंशनर्स को दी जाने वाली सुविधाओं में भी बढ़ोतरी हो रही थी।
तीन दशकों में बढ़ी देनदारियां
रिपोर्ट्स के अनुसार, पिछले तीन दशकों में केंद्र और राज्य सरकारों के लिए पेंशन की देनदारियां कई गुना बढ़ गई। साल 1990-91 में केंद्र सरकार का पेंशन बिल 3,272 करोड़ रुपए था और सभी राज्यों का 3,131 करोड़ रुपए था। साल 2020-21 तक केंद्र सरकार का बिल 1,90,886 करोड़ रुपए था और राज्यों का बिल 3,86,001 करोड़ रुपए था।
नई पेंशन योजना हुई शुरू
साल 1998 में केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने वृद्धावस्था सामाजिक और आय सुरक्षा परियोजना के लिए रिपोर्ट तैयार की। इस रिपोर्ट में उन्होंने पाया कि कामकाजी आबादी के 11 प्रतिशत से भी कम लोगों के पास सेवानिवृत्ति के बाद कुछ आय सुरक्षा थी, जो कि ईपीएफ या ईपीएस के रूप में थी।
नहीं था आर्थिक सुरक्षा का साधन
समिति ने पाया कि शेष कार्यबल के पास सेवानिवृत्ति होने के बाद आर्थिक सुरक्षा का कोई साधन नहीं था। जिसके चलते समिति ने तीन प्रकार के फंडों में निवेश करने की सिफारिश की, जिसमें सुरक्षित इक्विटी में 10 प्रतिशत तक निवेश की अनुमति, संतुलित इक्विटी में 30 प्रतिशत तक और विकास इक्विटी में 50 प्रतिशत तक निवेश करने का प्रावधान है। समिति की सिफारिश थी कि सेवानिवृत्ति के बाद रिटायरमेंट अकाउंट में कम से कम दो लाख रुपए का इस्तेमाल वार्षिकी खरीदने के लिए किया जाएगा।
नई पेंशन योजना बनी आधार
बता दें कि नई पेंशन योजना (New Pension Scheme) प्रणाली पेंशन सुधारों का आधार बनी और मूल रूप से असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए भी सरकार ने उसे अपना लिया। इसके बाद 22 दिसंबर, 2003 में केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए नई पेंशन योजना अधिसूचित कर दी।
योजना को किया अनिवार्य
1 जनवरी, 2004 में पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने सरकारी सेवा में शामिल होने वाले सभी नई भर्ती के कर्मचारियों के लिए इस नई पेंशन योजना को अनिवार्य कर दिया गया था। जिसके तहत हर महीने कर्मचारियों के वेतन और महंगाई भत्ते का दस प्रतिशत काटा जाता है।
तब कांग्रेस ने किया स्वीकार
साल 2004 में सरकार बदली और कांग्रेस सत्ता में आ गई। हालांकि, कांग्रेस ने भी पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की इस स्कीम को स्वीकार किया और लागू कर दिया।
ये है नई पेंशन योजना
बता दें कि नई पेंशन योजना में जीपीएफ की सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा नई पेंशन स्कीम शेयर मार्केट पर आधारिक है। यानी अगर कम रिटर्न की स्थिति रही तो फंड भी कम हो सकता है। मतलब मार्केट बढ़िया रहा तो ही कर्मचारियों को रिटायरमेंट के दौरान अच्छा पैसा मिल सकता है।
आश्रित परिजनों को नहीं मिलती राशि
नई पेंशन योजना में रिटायर्ड कर्मचारी की मृत्यु होने पर उसके आश्रित परिजनों को पेंशन की राशि नहीं मिलती है। जबकि, पुरानी पेंशन स्कीम में 20 लाख रुपए तक की ग्रेच्युटी की रकम मिलती है।
ग्राहकों में हुई वृद्धि
नई पेंशन स्कीम ने एक मजबूत ग्राहक आधार बनाया है और प्रबंधन के तहत इसकी संपत्ति में वृद्धि हुई है। ध्यान रहे कि नई पेंशन स्कीम के तहत योजनाओं की पेशकश नौ पेंशन फंड प्रबंधकों द्वारा की जाती है, जिसमें यूटीआई, एचडीएफसी, आईसीआईसीआई, एलआईसी, एसबीआई, टाटा, मैक्स, कोटक महिंद्रा और आदित्य बिड़ला शामिल हैं।
कमाई का ज्यादातर हिस्सा होता है खत्म
बता दें कि राज्यों द्वारा पेंशन भुगतान उनके स्वयं के कर राजस्व का एक चौथाई हिस्से को खत्म कर देता है। हिमाचल में राजस्व का लगभग 80 प्रतिशत, पंजाब में 35 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 24 प्रतिशत और राजस्थान में ये 30 प्रतिशत है।
मतलब राज्य सरकारों की कमाई का ज्यादातर हिस्सा पेंशन पर ही खत्म हो जाता है। अगर राज्य सरकार के कर्मचारियों के वेतन और वेतन को इस विधेयक में जोड़ दिया जाए तो राज्यों के पास अपनी कर प्राप्तियों से मुश्किल से ही कुछ बचता है।
ये मुद्दा है काफी बड़ा
गौरतलब है कि इंटर-जेनरेशनल इक्विटी का मुद्दा भी काफी बड़ा है। दरअसल, आज के करदाता सेवानिवृत्त लोगों की लगातार बढ़ती पेंशन के लिए भुगतान कर रहे हैं। यानी साल 1995 में सेवानिवृत्त हुए कर्मचारी की पेंशन साल 2025 में सेवानिवृत्त होने वाले व्यक्ति के समान हो सकती है।
आम आदमी की जेब पर असर
विशेषज्ञों का कहना है कि आज करदाता साल 2004 से पहले सरकारी सेवा में शामिल होने वाले लोगों के पेंशन बिल का भी भुगतान कर रही है। इसके अलावा 1 जनवरी, 2004 से शामिल होने वाले कर्मचारियों को राज्य सरकार जो 10 प्रतिशत दे रही हैं इसमें भी करदाता योगदान दे रहे हैं।
आर्थिक हालात हो सकते हैं खराब
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर ज्यादातर राज्यों में पुरानी पेंशन स्कीम को बहाल कर दिया जाता है तो सभी राज्य भारी कर्ज में डूब जाएंगे, जिससे कि देश की आर्थिक स्थिति पर काफी असर पड़ेगा।