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हिमाचल का एक ऐसा शहर, जहां नहीं होता है रावण दहन, जानिए इसके पीछे की कहानी
बैजनाथ। हिमाचल (Himachal) के कांगड़ा जिले में बैजनाथ एक शहर है ऐसा जहां दशहरा नहीं मनाया है। अगर कोई दशहरा मनाने की कोशिश करता है तो वह काल के गाल में समाहित हो जाता है या फिर उसे कोई गंभीर बिमारी जकड़ लेती है। इस शहर में कोई भी सुनार की दुकान नहीं है। कहा जाता है कि जो भी सुनार की दुकान खोलता है, उजड़ जाता है। पौराणिक कथाओं में बैजनाथ को रावण की तपोभूमि कहा गया है।
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अच्छाई पर बुराई की जीत का प्रतीक है दहन
आज पूरे देश में विजयादशमी के दिन लंकापति रावण के पुतला जलाया जाता है। रावण दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत माना गया है। लेकिन अब भी देश में कई ऐसे स्थान है, जहां दशहरा नहीं मनाया जाता है। इन स्थानों में लंकापति रावण के पुतले को जलाना पाप समझा जाता है। इन्हीं स्थानों में से एक स्थान है हिमाचल प्रदेश का बैजनाथ। यहां भगवान भोलेनाथ का हजारों साल पुराना बैजनाथ मंदिर है। ऐसा विश्वास है कि यहां जिसने भी रावण को जलाया, उसकी मौत तय है। इस कारण यहां कई सालों से रावण के पुतले को नहीं जलाया जाता है।
रावण दहन करने वाले की हो जाती थी अकाल मृत्यु
दशहरा ना मनाने की परंपरा यहां कई दशकों से है, लेकिन 70 के दशक में अन्य स्थानों में रावण के पुतले को जलाने की परंपरा को देखते हुए यहां भी कुछ लोगों ने दशहरा मनाना शुरू कर दिया। बैजनाथ मंदिर के ठीक सामने रावण के पुतले को जलाया जाने लगा। लेकिन उसके परिणाम घातक होने लगे। जिसने पहले दशहरे पर रावण को आग लगाई, वो अगले दशहरे तक जीवित नहीं था। ऐसा एक बार नहीं दो से तीन बार हुआ। इस उत्सव में भाग लेने वाले लोगों को भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। फिर सबका ध्यान इस तरफ गया कि रावण तो भगवान भोलेनाथ का परम भक्त था। कोई देव अपने सामने भला अपने भक्त को जलता हुआ कैसे देख सकता है। फिर क्या था, यह परंपरा यहां बंद हो गई। आज भी यह कस्बा दशहरे के दिन शांत होता है।
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