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हिमाचल में शादी-विवाह में पेड़ों के पत्तों से बने पत्तलों और डोनों में परोसी जाती है धाम
कांगड़ा। हिमाचल (Himachal) देवभूमि है। पावनता इसके चप्पे-चप्पे में तो है ही, परंपरा निर्वहन में भी हिमाचल का कोई सानी नहीं है। खासकर हिमाचल के उत्सव, त्यौहार विशेष होते हैं। वहीं शादियों में धाम भी स्वादिष्ट बनाई जाती है। अब आयोजन कोई भी हो हिमाचल की खाना बनाने की और परोसने की शैली लाजवाब (Amazing style of cooking and serving) होती है। मसलन धाम में सभी एक पंक्ति में बैठते हैं। खाना खाने के लिए जूते उतार कर बैठना पड़ता है। वोटी भी पावन वस्त्र यानी धोती-कुर्ता पहन कर ही खाना परोसता है। वहीं स्वादिष्ट पकवान अपने आप में विशेष होते हैं। जैसे कांगड़ा (Kangra) का खट्टा, बिलासपुर (Bilaspur) की धोतुआं दाल, चंबा की चुख, हमीरपुर का मदरा अपने आप में विशेषता लिए हुए हैं। अब हिमाचल की भागैलिक दृष्टि अलग-अलग है तो हिमाचल में रीति-रिवाज भी उसी प्रकार से निर्धारित हैं। वहीं कदम दर कदम में बोली में भी अंतर आता जाता है। अंतर भले ही आ जाए पर यहां परंपरा निवर्हन अपने आप में अनोखी परिपाटी है। आपको बताते हैं कि शादी-विवाह (Wedding Marriage) या अन्य समारोहों में पत्तल में खाना परोसा जाता था। अब तो मशीनी युग है और डिस्पोजल का उपयोग किया जाता है। मगर पहले ऐसा नहीं था। पहले पत्तलों का प्रयोग किया जाता था।
पेड़ों के चौड़े पत्तों से बनाए जाते थे पत्तल
ये पत्तल पेड़ के चौड़े पत्तों (Broad Leaves of Pattal Tree) से बनाए जाते थे। जो व्यक्ति इन पत्तलों को बनाता है वह जंगल (Forest) में जाकर पहले चौड़े-चौड़े पत्तों को लेकर आता और उनको साफ कर पत्तल बनाता। वहीं एक से दूसरे पत्तल को जोड़ने के लिए किसी गोंद का प्रयोग नहीं करता बल्कि घास का ही प्रयोग करता। सख्त घास के छोटे-छोटे टुकड़े काटकर उनको इस तरीके से जोड़ता कि वह एक आदमी के खाने लायक अनाज के लिए पर्याप्त हो जाए। कभी-कभी इन पत्तलों पर सुंदर नक्काशी भी की जाती थी। इसी तरह वह पूजा सामग्री या सब्जी के लिए डोने भी बनाता था। समारोह वाले दिन सुबह ही उनको उस घर में पहुंचाकर आता जिसमें समारोह होना निश्चित हुआ होता।
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कई लोगों का चलता रोजगार
इन पत्तलों को बनाने के बदले में वह पैसे लेता और साथ आयोजन वाले दिन धाम (Dham) का भी आनंद उठाता था। उसे पत्तल बनाने के लिए एक-दो माह पहले ही बोलना पड़ता था। स्थानीय भाषा (Local Language) में इसे साई कहा जाता है। आयोजक उसे अपने घर में आने वाले मेहमानों की संख्या के आधार पर बनाने का ऑर्डर करता और ठीक समय पर डिलीवरी करने का वादा करता। अब तो डिस्पोजल आने से कई लोगों का रोजगार छिन चुका है। वहीं डिस्पोजल पर्यावरण के लिए भी नुकसानदायक है।
एक साथ बैठकर धाम खाने का मजा ही अलग है
अब आयोजन वाले दिन कतारों में धाम परोसने का रिवाज है। स्टैंडिंग खाना नहीं बल्कि पंक्ति में बैठकर खाना परोसने का रिवाज (the custom of serving food in a row) है। ऐसे में खाना इन्हीं पत्तलों में सर्व किया जाता है। खाना खाने से पहले इन पत्तलों को पानी छिड़क कर साफ किया जाता है। यानी कि कुल-मिलाकर एक अनोखे आनंद की अनुभूति होती जो शायद आज के स्टैंडिंग खाने में नहीं दिखती है। आजकल भले ही तले हुए पकवान, जैसे पूड़ी, कचौड़ी, समोसा, न्यूडल जैसे खाद्य पदार्थ सर्व किए जाते हैं मगर जहां ये भोज्य पदार्थ सेहत के लिए हानिकारक हैं वहीं इस प्रकार के आयोजन में अनुशासन भी नजर नहीं आता है।
एक साथ उठने का नियम
ऐसे समारोहों में एक साथ उठने का नियम बरकरार था। ऐसे में एक अनुशासन (Discipline) सा दिखता था। पंक्ति में बैठे हुए भले ही आप अपना भोजन समाप्त कर चुके हों मगर आप तब तक नहीं उठ सकते, जब सारी पंक्ति अपना भोजन समाप्त ना कर ले। आजकल के आयोजनों में अनुशासन की कमी दिखती है। साथ में यह परवाह भी नहीं की जाती है कि खाना जूते पहनकर नहीं खाया जाता है। जिस स्थान पर पंडित या वोटी खाना बनाता है उसे भी ग्रामीणों ने घासफूस और लकड़ी आदि से बनाया होता था। यानी कि यह एक टेंपरेरी रसाई (Temporary Kitchen) तैयार की जाती थी। यहां सिवाय वोटी के किसी को भी जाने की इजाजत नहीं होती थी। या फिर वो आदमी प्रवेश कर सकता था जिसे देखरेख करने की इजाजत घरवालों ने दी होती थी।
पूजा में प्रयोग होते थे पत्तल के डोने
वहीं पूजा में भी पत्तल के डोने प्रयोग किए जाते थे। ऐसा करना शुभ भी माना जाता है ( It is also considered auspicious to do so) । कहा जाता है कि पूजा जैसे आयोजनों के लिए जितने पावन ये पत्तल के डोने होते हैं उतने धातु से बने बर्तन आदि नहीं होते हैं। धातु में विकार या दोष आ भी जाता है मगर प्रकृति की देन पेड़ों से बने हुए इन डोनों में कोई विकार नहीं आता था। अब तो पूजन के लिए भी डिस्पोजल (Disposal) डोनों का ही प्रयोग किया जाने लगा है। ऐसा लोग समय की बचत के लिए करने लगे हैं। मगर ऐसे में इन डोनों की शुद्धता कोई निश्चित नहीं है।
पत्तल वातावरण के लिए नहीं होते नुकसानदायक
वहीं पेड़ों के पत्तों से बने पत्तल वातावरण के लिए नुकसान दायक नहीं होते। इसका कारण यह है कि यह जल्द ही गल कर मिट्टी में तब्दील हो जाते हैं। साथ ही अगर इनको कोई पशु वगैरह भी खाले तो उनके स्वास्थ्य पर भी कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। इसके वनिस्पत प्लास्टिक आदि से बनाए जाने वाले पत्तल या डोने जहां वातावरण के लिए नुकसानदायक होते हैं वहीं पशुओं के लिए भी ये हानिकारक होते हैं।