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हाईकोर्ट ने सीएम के सुरक्षा अधिकारियों को पदोन्नत करने संबंधी आदेशों को अवैध ठहराया
शिमला। हाईकोर्ट ने सीएम के सुरक्षा अधिकारियों को कांस्टेबल से हेड कांस्टेबल पदोन्नत करने संबंधी रियायती आदेशों को अवैध ठहराया है। 8 दिसम्बर 2020 को सरकार ने मुख्यमंत्री की सुरक्षा में तैनात पीएसओ को हेड कांस्टेबल बनाने के लिए स्थाई आदेश जारी किए थे। इन आदेशों के अनुसार सीएम के पीएसओ को पदोन्नत करने का प्रावधान करते हुए शर्त रखी थी कि जिस कांस्टेबल ने तीन साल से अधिक का समय सीएम की सुरक्षा में लगाया हो उसे विशेष रियायत के 10 फीसदी कोटे के तहत हेड कांस्टेबल बनाया जाएगा।
एक शर्त यह भी थी की एक साल में केवल एक कांस्टेबल को पदोन्नत किया जाएगा। यह रियायत केवल सीएमके पीएसओ तक ही सीमित की गई थी। उक्त स्थाई आदेश को जारी करने की वजह बताते हुए सरकार का कहना था कि सीएम की सुरक्षा में तैनात कांस्टेबलों की जिम्मेवारियां बहुत ज्यादा होती है। उन्हें 24 घंटे सेवा में तैनात रहना पड़ता है। सीएम के प्रदेश और देश दौरे के दौरान साथ रहना पड़ता है। अन्य गणमान्य व्यक्तियों की तुलना में सीएम को ज्यादा खतरे का भय रहता है जिससे निपटने के लिए सीएम के पीएसओ को अतिरिक्त श्रम करना पड़ता है।
हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की सुरक्षा में तैनात पीएसओ ने उपरोक्त स्थाई आदेशों का लाभ केवल सीएम के पीएसओ तक सीमित करने को गैरकानूनी ठहराते हुए उन्हें भी विशेष रियायत में शामिल करते हुए पदोन्नति का लाभ देने के लिए याचिका दायर की थी। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने याचिका को खारिज करने के साथ साथ सरकार के स्थाई आदेशों को भी अवैध ठहराते हुए खारिज कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि सीएम के पीएसओ और अन्य गणमान्य व्यक्तियों की सुरक्षा में तैनात पीएसओ की सेवाओं में कोई फर्क नहीं है। जैसे सीएम संवैधानिक पद पर आसीन हैं उसी तरह राज्यपाल, विधानसभा अध्यक्ष, हाईकोर्ट के न्यायाधीश और मंत्रिमंडल के सदस्य भी संवैधानिक पद पर आसीन हैं। सभी के साथ सुरक्षा का खतरा जुड़ा हुआ है। सरकार का यह निर्णय सबसे असंगत तो इसलिए भी है कि वह एक वर्ग विशेष को उनकी बारी से बाहर पदोन्नति का लाभ देना है जो समानता के अधिकार का उल्लंघन है।