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High Court ने खारिज की NOC की मांग कर रहे डॉक्टर की याचिका
Himachal HC Orders: शिमला। यदि निजी हित और सार्वजनिक हित (Public Interest) के बीच टकराव होता है, तो निजी हित को पीछे रहना होगा। यह टिप्पणी प्रदेश हाईकोर्ट ने एम्स बिलासपुर (AIIMS Bilaspur) में सेवा देने के लिए एनओसी की मांग करने वाले डॉक्टर की याचिका (Petition) को खारिज करते हुए की। प्रार्थी डॉक्टर ने सरकार से अनापत्ति प्रमाण पत्र दिलाने की मांग को लेकर हाईकोर्ट (High Court) के समक्ष याचिका दायर की थी। कोर्ट ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत ‘जीवन के अधिकार’ में स्वास्थ्य का अधिकार भी शामिल है।
एकल पीठ के निर्णय को रद्द करते हुए मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचन्द्र राव व न्यायाधीश ज्योत्स्ना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने कहा कि हिमाचल प्रदेश सरकार (Himachal Pradesh Government) के तहत सेवारत डॉक्टर द्वारा दिया गया बांड पांच साल की अवधि तक जारी रहेगा। इसकी यह अवधि पीजीआई चंडीगढ़ से 2020 में क्लिनिकल हेमेटोलॉजी में डॉक्टरेट ऑफ मेडिसिन की डिग्री पूरी करने से शुरू होकर 5 वर्षों तक लागू रहेगी। इसलिए प्रार्थी डॉक्टर बॉन्ड की शर्तों से बाहर नहीं निकल सकता है।
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प्रतिवादी डॉक्टर को वर्ष 2008 में MBBS कोर्स पूरा करने के बाद वर्ष 2009 में मेडिकल ऑफिसर के रूप में नियुक्त किया गया था। बाद में उसने PGI चंडीगढ़ से वर्ष 2015 में मेडिसिन में एमडी की डिग्री हासिल की। इसके बाद उसने PGI चंडीगढ़ से वर्ष 2020 में क्लिनिकल हेमेटोलॉजी में डॉक्टरेट ऑफ मेडिसिन की डिग्री प्राप्त की। उसने PGIMER चंडीगढ़ से क्लिनिकल हेमेटोलॉजी पाठ्यक्रम में डीएम पूरा करने के बाद 5 साल के लिए हिमाचल प्रदेश राज्य की सेवा करने के लिए एक बांड जमा किया था। उसे PG/SS नीति के अनुसार स्वास्थ्य सेवा निदेशालय हिमाचल प्रदेश द्वारा तीन साल के अध्ययन अवकाश के बदले छुट्टीयों के वेतन का भुगतान भी किया गया था।
बांड की राशि 40 लाख रुपये रखी गई थी। शर्त के मुताबिक यदि इसका उल्लंघन होता है, तो वह हिमाचल प्रदेश सरकार को कुल व्यय का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगा। इसके अलावा उक्त संस्थान चंडीगढ़ में अध्ययन के संबंध में वजीफा का अनुदान और उसके द्वारा खर्च की गई धनराशि ब्याज सहित लौटनी होगी। एकल पीठ के मुताबिक, डॉक्टर द्वारा दिया गया वचन हिमाचल प्रदेश राज्य की सेवा करने का था, इसलिए यदि वह एम्स बिलासपुर में सेवा करता है तो इसका बिल्कुल भी उल्लंघन नहीं किया जाएगा क्योंकि यह हिमाचल प्रदेश राज्य के भीतर स्थित है। एकल पीठ के इस निर्णय को अपील के माध्यम से चुनौती दी गई थी और खंडपीठ ने एकल पीठ के निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय के विपरीत पाते हुए उपरोक्त आदेश पारित कर दिए।