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शिमला। प्रदेश उच्च न्यायालय ने विद्युत बोर्ड की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए स्थानांतरण से जुड़े एक मामले में कड़ा संज्ञान लिया है और उन्हें भविष्य में सचेत रहने की नसीहत दी है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश ज्योत्स्ना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने हरिंदर सिंह द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए यह निर्णय सुनाया।
कोर्ट ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन करने के पश्चात पाया कि निजी प्रतिवादी को उसकी इच्छा की पोस्टिंग देने के इरादे से प्रार्थी को उसके स्थान पर स्थानांतरित किया गया जबकि निजी प्रतिवादी वर्ष 1998 से शिमला में ही कार्य कर रही है। यही नहीं उसे पदोन्नति के पश्चात भी शिमला से बाहर स्थानांतरित नहीं किया गया और जब उसे टूटू से बोर्ड सचिवालय के लिए शिमला में ही स्थानांतरित किया गया तो उसने स्थानांतरण आदेश में संशोधन करवाते हुए प्रार्थी का स्थानांतरण बोर्ड सचिवालय के लिए करवा दिया और खुद प्रार्थी के स्थान पर टूटू में समायोजित हो गई। न्यायालय ने कहा कि इस मामले में विद्युत बोर्ड का आचरण निंदनीय है। इस मामले में विद्युत बोर्ड ने प्रार्थी के साथ पक्षपात किया है। आमतौर पर दिए गए तथ्यों और परिस्थितियों में न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर कहा कि निजी प्रतिवादी को दूर-दराज या दूरस्थ क्षेत्र में स्थानांतरित करना चाहिए ताकि वह अन्य कर्मियों की तरह बेचैनी के साथ-साथ अलगाव के दर्द को भी समझ सके। हालांकि निजी प्रतिवादी जल्द ही सेवानिवृत्त होने वाली हैं इस कारण न्यायालय ने उसके खिलाफ इस तरह के आदेश पारित करना उचित नही समझा। हालांकि न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अगर विद्युत बोर्ड शीघ्र ही अधीक्षक ग्रेड-2 के स्थानांतरण पर विचार करता है तब केवल निजी प्रतिवादी होगी जिसे शिमला जिले के बाहर स्थानांतरित करने पर विचार किया जाए।
कोर्ट ने कहा कि निजी प्रतिवादी को थोड़ी दूर ही स्थानांतरित करने का आदेश दिया गया था फिर भी वह सुविधा वाले स्थान के लिए स्थानांतरण आदेश में संशोधन करवाने में कामयाब रही। प्रार्थी को वर्ष 1992 में लिपिक के रूप में नियुक्त किया गया था और उसके बाद वरिष्ठ सहायक पदोन्नत किया गया। कार्यालय आदेश 30 जून, 2020 के अनुसार उसे अधीक्षक ग्रेड-2 के पद पर पदोन्नत किया गया था। जिसके बाद विद्युत मंडल नाहन से विद्युत सब डिवीजन टूटू के लिए स्थानांतरित होने का आदेश दिया गया। 14 जुलाई, 2020 को उसने टूटू में ज्वाइन किया था। फिर 29 सितंबर, 2021 के कार्यालय आदेश के अनुसार उसे प्रतिवादी रंजू शर्मा के स्थान पर बोर्ड सचिवालय, शिमला को स्थानांतरित करने का आदेश दिया जिसे प्रार्थी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
प्रदेश हाई कोर्ट में न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश ज्योत्स्ना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने सीनियर सेकेंडरी स्कूल मंडी के स्कूल भवन और खेल के मैदान इत्यादि को बर्बाद करने का आरोप लगाने वाली याचिका पर सुनवाई 4 दिसंबर के लिए टाल दी है। कोर्ट ने प्रतिवादियों को अगली तारीख से पहले अपने जवाब दायर करने का निर्देश दिया।
गौरतलब है कि हाईकोर्ट विजय सीनियर सेकेंडरी स्कूल मंडी के छात्र द्वारा मुख्य न्यायाधीश को संबोधित एक पत्र में आरोप लगाया है कि लॉकडाउन के दौरान सरकार ने स्कूल भवन, खेल के मैदान और मंच आदि को भौतिक रूप से नष्ट कर दिया और खाली जगह को भी ढक दिया है, जिससे स्कूल में अफरातफरी का माहौल है। उन्होंने आरोप लगाया है कि वहां बड़े शॉपिंग मॉल बनाने का प्रस्ताव है, जिससे कुछ अमीर लोगों और राजनीतिक नेताओं को फायदा होगा। उन्होंने आरोप लगाया है कि एक निजी स्कूल खोलने के लिए खेल का मैदान होना अनिवार्य बनाया गया है, जबकि उक्त स्कूल में सरकार ने खुद ही खेल के मैदान को बर्बाद कर दिया है। सरकार के डर से स्थानीय निवासी, मीडिया और सामाजिक संगठन सामने नहीं आ रहे हैं। भवन में पहले एक प्राथमिक सरकारी स्कूल था, जिसे कुछ साल पहले बंद कर दिया गया था और अब सरकार अवैध रूप से वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल को भी बंद करने की साजिश रच रही है ताकि अमीर और प्रभावशाली व्यक्तियों को समायोजित किया जा सके। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि गरीब, अनाथ और प्रवासी बच्चे स्कूल में पढ़ रहे हैं। अधिकारियों द्वारा छात्रों का परिणाम खराब करने की धमकी देकर मानसिक रूप से दबाव डाला जा रहा है और उन्हें तरह-तरह के प्रलोभन भी दिए जा रहे हैं। इस जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान स्कूल मैनेजमेंट कमिटी यू ब्लॉक (कन्या विद्यालय) ने भी कोर्ट से गुहार लगाई कि उपरोक्त शैक्षणिक संस्थान को तोड़ने से बचाया जाए एवं बच्चों के हितों की रक्षा की जाए। अभी तक इस जनहित याचिका में प्रदेश सरकार द्वारा अभी तक कोई संतोषजनक जवाब दायर नहीं किया गया है।
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