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अदालती आदेशों के अमल में ढिलाई पर सुक्खू सरकार की खिंचाई
शिमला। प्रदेश हाईकोर्ट ने अदालती आदेशों (Court Orders) पर अमल में देरी को गंभीरता से लेते हुए राज्य सरकार की खिंचाई की है। कोर्ट ने कहा कि अदालती फैसलों को लागू करने में देरी होना प्रदेश के शासन के लिए अच्छे संकेत नहीं है।
न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर ने अपने आदेश में कहा कि पक्षकारों के साथ न्याय करने हेतु सरकार का यह प्रथम दायित्व है कि वह कोर्ट के आदेशों पर शीघ्रता से अमल करे। कोर्ट के आदेशों पर अमल करने के लिए उचित तंत्र अथवा तौर तरीके को विकसित किया जाना जरूरी है। कानून के राज की स्थापना के लिए सरकार की यह प्राथमिकता होनी चाहिए कि कोर्ट के आदेशों की समय पर अनुपालना हो।
31 जुलाई तक की मोहलत
कोर्ट ने प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव (Chief Secretary) को आदेश दिए कि वह 31 जुलाई तक कोर्ट के आदेशों की अनुपालना हेतु जरूरी तंत्र अथवा तौर तरीके को विकसित करे। कोर्ट ने मुख्य सचिव से अनुपालना रिपोर्ट भी तलब की है और चेतावनी दी है कि ऐसा न करने पर उनके खिलाफ प्रतिकूल आदेश भी पारित हो सकते हैं। मामले के अनुसार हाईकोर्ट ने 29 नवम्बर 2022 को हिमाचल प्रदेश कर्मचारी चयन आयोग (HPSSC) को आदेश दिए थे कि वह प्रार्थी भरत भूषण शाह की जूनियर प्रोग्रामर के पद के लिए पात्रता पर 10 जनवरी 2023 तक निर्णय ले। आयोग ने कोई निर्णय 10 जनवरी तक नहीं लिया और 21 फरवरी को सरकार ने चयन आयोग भंग कर दिया।
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25 मार्च को प्रार्थी ने हाईकोर्ट के आदेशों पर अमल हेतु अनुपालना याचिका दायर की। 21 जून को मुख्य सचिव की ओर से जारी पत्राचार के माध्यम से कोर्ट को बताया गया कि कोर्ट द्वारा कर्मचारी चयन आयोग को दिए आदेशों पर अमल भंग किए गए आयोग का ओएसडी अकेला नहीं कर सकता। इसलिए कोर्ट के आदेशों पर अमल हेतु उचित तंत्र अथवा तौर-तरीके को अपनाने के लिए पर्याप्त समय चाहिए। इस पर कोर्ट ने कहा कि चयन आयोग को भंग हुए 4 महीने हो गए हैं और याचिका दायर किए हुए भी 3 महीने हो चुके हैं। इसलिए उचित तंत्र अथवा तौर-तरीके के अभाव में आयोग को दिए आदेशों पर अमल न होना प्रदेश के शासन के लिए अच्छे संकेत नहीं है। मामले पर सुनवाई 8 अगस्त को निर्धारित की गई है।