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हिमाचल हाईकोर्ट ने रद्द किए वन रक्षक की सेवा समाप्त करने के आदेश
शिमला। हिमाचल हाईकोर्ट (Himachal High Court) ने गलत तरीके से वर्ष 1996 में वन रक्षक (Forest Guard) ललिता जिंदल की सेवा समाप्त करने वाले आदेश को रद्द कर दिया। हालांकि न्यायालय ने वन विभाग को यह छूट दी है कि अगर वह चाहे तो मामले पर कानूनी तौर पर कार्यवाही कर सकता है। न्यायाधीश सत्येन वैद्य ने ललिता जिंदल द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए यह निर्णय सुनाया। याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार प्रार्थी को 28 फरवरीए 1986 को फॉरेस्ट गार्ड के पद पर नियुक्त हुई थी। प्रार्थी को 7 अगस्त से 9 अगस्त 1995 को उसकी सास की तबीयत खराब होने के कारण छुट्टी पर जाना पड़ा। सास की तबीयत ज्यादा खराब होने के कारण उसने अपनी छुट्टी को बढ़ाने बाबत टेलीग्राम के माध्यम से आग्रह किया।
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प्रार्थी 1 मई 1996 तक अपनी सेवाएं ज्वाइन ना कर सकी। 1 मई 1996 को जब अपनी ड्यूटी ज्वाइन (Join Duty) करने के लिए गई तो उसे कहा गया कि 30 अप्रैल 1996 को उसकी सेवाओं को समाप्त कर दिया गया है। हाईकोर्ट ने मामले से जुड़े तथ्यों के दृष्टिगत यह पाया कि विभाग ने प्रार्थी की सेवाओं को समाप्त करने से पूर्व उसे 1 महीने का नोटिस (Notice) नहीं दिया। केंद्रीय सिविल सेवा (अस्थाई सेवा) नियम 1965 के नियम 5 के मुताबिक यह नोटिस प्रार्थी को व्यक्तिगत तौर पर या रजिस्टर्ड पोस्ट के माध्यम से दिया जाना था। नोटिस स्वीकृत न होने की स्थिति में इसे ऑफिशियल गजट में प्रकाशित किया जाना था। जबकि विभाग ने केंद्रीय सिविल सेवा (अस्थाई सेवा) नियम 1965 के नियम 5 के मुताबिक ऐसा कुछ नहीं किया और प्रार्थी की सेवाओं को बिना नोटिस जारी किए ही समाप्त कर दिया। न्यायालय ने मामले से जुड़े तथ्यों के दृष्टिगत उपरोक्त फैसला सुना दिया।
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