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कैसे हुई कांवड़ यात्रा की शुरुआत, आप जानते हैं कौन था पहला कांवड़
Sawan 2024 : सावन का महीना आरंभ हो चुका है, जो भगवान भोलेनाथ (Lord Shiva) का प्रिय महीना माना जाता है। इस वर्ष 2024 में सावन महीने की कांवड़ यात्रा 22 जुलाई से शुरू हो चुकी है और इसका समापन सावन शिवरात्रि (Shivratri) पर शिवजी पर जलाभिषेक के साथ होगा। सावन के महीने में शिवभक्त कांवड़ यात्रा पर निकलते हैं और पवित्र नदियों से जल लाकर भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं।
कई लोगों के मन में यह सवाल उत्पन्न होता है कि हर साल केसरिया रंग के वस्त्र धारण करके शिवभक्त कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) क्यों करते हैं। इस क्रम में आइए जानते हैं कि सबसे पहले कांवड़ यात्रा किसने शुरू की थी और क्या है कांवड़ यात्रा का इतिहास।
परशुराम थे पहले कांवड़िया
कुछ लोगों का मानना है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के बागपत के पास बने पूर्ण महादेव का जलाभिषेक किया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार परशुराम गढ़मुक्तेश्वर (Garhmukteshwar) से कांवड़ में गंगा जल लेकर आए थे और फिर प्राचीन शिवलिंग का जलाभिषेक किया था। कहते हैं, तभी से यह परंपरा चली आ रही है।
श्रवण कुमार को भी माना जाता है पहला कांवड़िया
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, त्रेता युग में सबसे पहले श्रवण कुमार ने कांवड़ यात्रा की थी। श्रवण कुमार के माता-पिता ने तीर्थ यात्रा के दौरान हरिद्वार में गंगा स्नान की इच्छा जाहिर की थी। उनकी इच्छा पूरी करने के लिए श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार (Haridwar) में गंगा स्नान कराया। वापस जाते समय गंगाजल लेकर गए, यहीं से कांवड़ यात्रा की शुरुआत मानी जाती है।
श्री राम भी कहलाते हैं पहले कांवड़िया
अन्य धार्मिक मान्यता के अनुसार, सर्वप्रथम कांवड़ यात्रा श्री राम ने शुरू की थी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, बिहार (Bihar) के सुल्तानगंज से अपने कांवड़ में गंगाजल भरकर बाबाधाम के शिवलिंग पर जलाभिषेक किया था। कहते हैं, तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी।
सबसे पहले देवताओं ने किया था जलाभिषेक
एक और प्रचलित मान्यता के अनुसार, जब समुद्र मंथन से हलाहल विष निकला था, तो सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने विषपान किया था, जिस वजह से उनका कंठ नीला पड़ गया था। भगवान भोलेनाथ के शरीर की जलन को कम करने के लिए सभी देवताओं ने भगवान शिव पर कई पवित्र नदियों का जल अर्पित किया था, जिसमें गंगाजल भी शामिल था। कहते हैं, यहीं से श्रावण मास में कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी।
नेशनल डेस्क