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क्यों विदेश में बसे भारतीयों को कहा जाता है NRI? यहां पढ़ें कारण
हमारे देश के कई सारे लोग बाहरी देशों में रह रहे हैं। ज्यादातर भारतीय रोजगार और शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से विदेश जाते है और कुछ समय के बाद वह विदेश में अनिश्चित काल के लिए बस जाते हैं। कोई भी व्यक्ति पूरे साल में से कम से कम 183 दिन अगर विदेश में रहता है तो वह एनआरआई (NRI) यानी नॉन रेजिडेंट इंडियन कहलाता है।
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वर्तमान समय में विदेशों में अध्ययन करने के लिए भारत के छात्रों की संख्या ज्यादा है। भारत के कई ऐसे मूल निवासी है जो अब विदेशों में रह रहे है। उन्होंने अब वहीं की नागरिकता प्राप्त कर ली है। भारत सरकार एनआरआई के लिए एक ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) कार्ड प्रदान करती है, जो उन्हें उन सभी आर्थिक और शैक्षिक लाभों का
अधिकार देता है। दुनिया भर के देशों में रहने वाले लगभग 24 मिलियन प्रवासी भारतीय होने का अनुमान है। उनमें से अधिकांश संयुक्त राज्य अमेरिका में रहते हैं।
बता दें कि भारतीय सरकार एनआरआई को कुछ अधिकार देती है, जैसे कि भारत की नागरिकता और वोट डालना, देश में जमीन और जायदाद बनाए रखना, खास दर पर बैंक खाता खोलना, इस आधार पर टैक्स से छूट कि वह दूसरे देश में वहां के हिसाब से टैक्स दे रहा है और देश की यूनिवर्सिटी में उनके बच्चों के लिए सीटें आरक्षित रहने का अधिकार देती हैं।
एनआरआई का फुल फॉर्म नॉन रेजिडेंट इंडियन (NRI) ( Non Resident Indian) होती है। नॉन रेसिडेंट इंडियन को हिंदी में प्रवासी भारतीय कहते हैं। इसका अर्थ है कि वह भारतीय लोग जिनका जन्म तो भारत में हुआ है, लेकिन अब वह भारत छोड़कर किसी दूसरे देश में रहने लगे हैं। ज्यादातर लोग व्यापार या रोजगार के लिए विदेश में जाते हैं और जब उनको वहां अच्छी जॉब या उनका व्यापार अच्छा चल पड़ता है तो वह वहीं पर रहने लगते है। इसके अलावा अच्छी
शिक्षा हासिल करने के लिए, प्रशिक्षण लेने के लिए, व्यावसायिक उद्देश्य के लिए आदि के लोग एनआरआई बनते हैं।
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