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बहुत कठिन है डगर पनघट की, बीजेपी का अब दोबारा पहाड़ पर चढ़ना आसान नहीं
कांगड़ा । हिमाचल (Himachal) में विधानसभा इलेक्शन हैं। बीजेपी मिशन रिपीट का दावा कर रही है। रिवाज बदलने की बात कह रही है। बीजेपी के स्टार प्रचारक लगातार प्रचार अभियान में जुटे हैं। फिर चाहे राज्यसभा के सांसद हों, बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता हों, उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath हों इन सबने कमान संभाल ली है। मगर इस फेहरिस्त में जिसको हिमाचल का नायक बनाने की कोशिश हो रही है यानी सीएम जयराम ठाकुर कहीं भी नहीं दिखते। ऐसा लग रहा है मानों उन्हें जिताने का ठेका केंद्र ने ले रखा हो। उनके अपने प्रयास या तो कहीं नजर ही नहीं आते हैं अगर कहीं नजर भी आते हैं तो वह भी दूसरे के कंधे पर आधारित। बीजेपी यूं तो जनता का विकास करवाने की बात कह रही है, मगर यह जिस कद्र महंगाई (Inflation) आसमान पर पहुंची है। उस पर बीजेपी (BJP) चुप हो रही है। मगर आम जन के मन में आक्रोश है और इसका सारा गुस्सा शायद चुनाव में फूटे। वहीं इन पांच सालों में बेरोजगारी ने रिकॉर्ड तोड़े हैं।रोजगार के लिए अव्वल तो प्रयास हुए ही नहीं और अगर हुए भी हैं तो घोटाले सामने आ गए। फिर पुलिस भर्ती पेपर लीकेज मामला हो या जोओए के पेपरों का मामला हो। दूसरी तरफ हिमाचल पर 70 हजार करोड़ का कर्ज भी सिर पर चढ़ गया। हालांकि विकास की तरफ देखा जाए तो प्रदेश में कई ऐसे स्थान हैं जहां की पांच साल तक सुध तक नहीं ली गई। क्षेत्र विशेष के विधायक अब तो चुनाव के लिए गली-गली में वोट मांगते फिर रहे हैं, मगर यही विधायक शायद तब वहां नहीं गए जब वे सत्ता में आए थे। वहीं टिकट आबंटन का टंटा अब बखेड़ा बन गया है।
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बागी राह में अटकाएंगे रोड़े,ओपीएस का मुद्दा बनेगा जी का जंजाल
बीजेपी ने 10 सीटिंग एमएलए (10 Seating MLA) के टिकट काट दिए। नतीजतन बीजेपी में बगावत चरम पर है। शायद बीजेपी इस बात को स्वीकार करे या ना करे मगर ये बागी इनके लिए आफत बनने वाले हैं। ये बागी बीजेपी की राह में ऐसे रोड़े पैदा करेंगे कि शायद बीजेपी को इसका अंदाजा भी नहीं होगा। वहीं कर्मचारी भी बीजेपी के पक्ष में नहीं हैं। ओपीएस के मुद्दे पर बीजेपी पूरी तरह से फेल हुई है। अब भले ही बीजेपी यह कहे कि यह मुद्दा हम ही सॉल्व करेंगे, मगर कर्मचारियों(employees) ने देख लिया कि जिस सरकार को पांच साल दिए और उस सरकार के मंत्रियों को साढ़े चार साल तक जनता और जनता के मुद्दों से कोई सरोकार ही नहीं रहा तो क्या वह सरकार आगे भी कुछ कर पाएगी। यानी कि पूरे कर्मचारी नाराज और हताश हैं।
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युवा भी बीजेपी से कोई खास खुश नहीं है। वहीं सीएम (CM) का दो टूक यह कह देना कि कर्मचारियों को लगता है कि विधायकों की पेंशन ज्यादा है या इन्हें पेंशन मिलती है तो मैं उनसे आह्वान करता हूं कि आप भी आगे आइए और चुनाव लड़िए। मैं कई बार बड़ी सीधी सी बात कह देता हूं। उस वक्त सीएम साहब ने यह बात तो कह दी मगर यह नहीं सोचा कि उनकी सीधी सी बात उनके लिए ही उल्टी पड़ेगी। चुनावी नतीजों के अभी खैर क्यास लगाए जा रहे हैं। कौन पार्टी जीतेगी और कौन हारेगी यह बाद की बात है मगर पहले की बात तो यह है कि बीजेपी के धुरंधर यह बैठकर सोचें कि हम मिशन रिपीट का दावा जो कर रहे हैं तो क्या हम अपने काम में भी खरे उतर पाए हैं। जनता के मन में क्या है वह जनता जानती है। आंकड़े और क्यास लगाना और बात है। मगर हकीकत तभी सामने आएगी जब चुनावों के नतीजे सामने आएंगे। बहरहाल बेशक बीजेपी के स्टार प्रचारक लगातार हिमाचल में बीजेपी की हिमायत कर रहे हैं, मगर कई बार प्रचार चाहे जितना मर्जी कर लें ठीक नाक के नीचे से बाजी हाथ से चली जाती है। ऐसा पहले भी कई राज्यों में हो चुका है। यदि हिमाचल में भी हो जाए तो कोई बड़ी बात नहीं है। वहीं बीजेपी के नेताओं का लगातार जनसभाओं में आंसू टपका कर दिखाना भी महज ड्रामेबाजी से ज्यादा कुछ नहीं है। इनको आंसू तब निकल रहे हैं जब चुनाव में वोट लेने का समय है। मगर इन नेताओं ने जो पूरे पांच साल जनता के आंसू निकाले हैं उनका स्वभाव आखिर कौन देगा। तो जिस हिसाब से चुनाव जीतने के लिए बीजेपी आज ओवरकॉन्फिडेंट (overconfident) नजर आ रही है, तो ऐसे में यह बात भी जान लेना जरूरी है कि इस बार पहाड़ चढ़ना कोई आसान बात नहीं है।