-
Advertisement
![](https://himachalabhiabhi.com/wp-content/uploads/2021/10/navratri.jpg)
शारदीय नवरात्रः ये है कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त,डोली में सवार हो कर आएगी मां
हिंदू धर्म में नवरात्र के पर्व का विशेष महत्व है। माता के भक्तों को अब शरद नवरात्र का इंतजार है। पंचांग के अनुसार नवरात्र का पर्व 07 अक्टूबर 2021, गुरुवार से आरंभ होगा और 15 अक्टूबर 2021 को समाप्त होगा। कलश स्थापना पंचांग के अनुसार 07 अक्टूबर होगी, कलश स्थापना के साथ ही नवरात्र के पर्व की विधि पूर्वक शुरूआत मानी जाती है। न धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कलश को सुख समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। कलश को नौ देवियों का स्वरूप माना गया है। कहा जाता है कि कलश के मुख में श्रीहरि भगवान विष्णु, कंठ में रुद्र और मूल में ब्रह्मा जी वास करते हैं। तथा इसके बीच में दैवीय शक्तियों का वास होता है।
- नवरात्रि कलश स्थापना तिथि: 7 अक्टूबर 2021, गुरुवार
- कलश स्थापना शुभ मुहूर्त: 06:17Am से 07:07Am तक
- ध्यान रहे कि मां दुर्गा की मूर्ति के दाईं तरफ कलश को स्थापित किया जाना चाहिए।
घटस्थापना विधि और मंत्र
नवरात्र के दिन सुबह सूर्योदय से पहले स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूजा स्थल को गंगा जल से पवित्र करें और चौकी पर माता की मूर्ति स्थापित करें। नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा की पूजा करने से पहले कलश स्थापित किया जाता है। मान्यता है कि कलश में दैवीय शक्तियां विराजमान होती हैं। कलश को स्थापित करने से पहले मिट्टी के बर्तन में जौ बोएं तथा उसके बीचों बीच कलश स्थापित करें। इस दौरान ॐ भूम्यै नमः मंत्र का जाप करें। कलश स्थापना से पहले स्वास्तिक बनाएं, इसमें दो सुपारी, मोली, सिक्के और अक्षत डालें। गंगाजल छिड़कते हुए ॐ वरुणाय नमः का जाप करें। फिर माता की लाल चुनरी से लपेट दें। कलश पूजन के बाद नवार्ण मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे!’ का जाप करें। इसके बाद मां दुर्गा की प्रतिमा के सामने अखंड दीप प्रज्जवलित कर धूप दीप और आरती करें।
यह भी पढ़ेंः कल से शुरू होने वाले हैं शारदीय नवरात्रः इस तरह करें मां दुर्गा के स्वागत की तैयारी
नवरात्र के पर्व में माता की सवारी का विशेष महत्व बताया गया है। माता की सवारी नवरात्र के प्रथम दिन से ज्ञात की जाती है। इस बारे में शास्त्रों में भी वर्णन मिलता है। माता की सवारी के बारे में देवीभाग्वत पुराण में बताया गया है।
- शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे।
- गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥
देवी भाग्वत पुराण के अनुसार नवरात्र की शुरुआत सोमवार या रविवार को हो तो इसका अर्थ है कि माता हाथी पर सवार होकर आएंगी। शनिवार और मंगलवार को माता अश्व यानी घोड़े पर सवार होकर आती हैं। इसके साथ जब गुरुवार या शुक्रवार को नवरात्र का पर्व आरंभ हो तो इसका अर्थ ये है कि माता डोली पर सवार होकर आएंगी। इस बार शरद नवरात्र का पर्व गुरुवार से आरंभ हो रहा है। इसका अर्थ ये है कि इस बार माता ‘डोली’ पर सवार होकर आएंगी। नवरात्र की शुरुआत चित्रा नक्षत्र में हो रही है जो सुख और सौभाग्य का प्रतीक है। ज्योतिषों के अनुसार कोई जातक नवरात्र के शुभ मुहूर्त में किसी कार्य को शुरू करने पर सफतला जरूर मिलेगी।