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सुकेत रियासत का चमत्कारी नरसिंह मंदिर, स्थापना के बाद से होने लगे शुभ काम
सुंदरनगर। हिमाचल प्रदेश को देवभूमि कहा जाता है क्योंकि यहां पर अनेकों मंदिर स्थापित हैं। यहां के धार्मिक स्थलों में छोटी काशी मंडी (Mandi) का नाम प्रमुख है। हम बात करेंगे सुकेत रियासत की। सुकेत रियासत का प्रारंभिक इतिहास इस बात को दर्शाता है कि इस रियासत के राजाओं ने अनेक राजवंशों के राजाओं के साथ युद्ध किए जिनमें प्रमुख कुल्लू राजवंश था। आज हम आप को सुकेत रियासत (Suket riyasat) पुराना बाजार में स्थापित नरसिंह मंदिर के इतिहास से रूबरू करवाने जा रहे हैं …
मान्यतानुसार कहा जाता है कि पांडव कालीन पांगणा मंदिर में स्थापित एक मालती का पौधा था जो बड़ा चमत्कारी था। उस वृक्ष से कामना करने पर स्वर्ण पुष्प प्राप्त होते थे। कालांतर में सुकेत रियासत के शासक राजा ने भी उसके चमत्कार के बारे में जानकारी प्राप्त की। सन 1240 में जब मदन सेन ने अपनी राजधानी को लोहरा परिवर्तित किया तो उस वृक्ष को अखाड़ कर साथ लाना चाहा परन्तु वह उखाड़ते ही वह मुरझा गया। उसके नीचे नरसिंह भगवान की एक पत्थर की शिला व शालिग्राम में आकाश और पृथ्वी के साथ दक्षिण भाग में सिंह की आकृति वाली शिला प्राप्त हुई जिसको राजा साथ लेकर लोहारा आए।
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कई वर्षों तक शालिग्राम भगवान व शीला का पूजन अपने महल में ही करते रहे। घर में शुद्ध-अशुद्ध के कारण राजपरिवार में कई प्रकार के उतार-चढ़ाव देखने को मिले। सन 1280 में तत्कालीन राजा करतार सेन ने अपनी राजधानी ताम्रकूट पर्वत के नीचे एक नगर बसाया जिसका नाम करतारपुर रखा और वहां पर उसने एक मन्दिर का निर्माण करवाकर शिला को स्थापित किया। नरसिंह मंदिर की स्थापना के बाद बहुत शुभ कार्य होने लगे। करतार सेन की पत्नी का संबंध जसवां रियासत के राज परिवार से था। उनकी पत्नी ने नरसिंह भगवान की उस शिला व मालती के पौधे के चमत्कार को देखते हुए संकल्प लिया कि आज के बाद जो ही राजा बनेगा उसका राजतिलक राजसी ठाठ से इसी नरसिंह भगवान के मंदिर में किया जाएगा। भगवान नरसिंह की पूजा हर रोज राजपरंपरा के अनुसार की जाएगी।