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देवभूमि में मशालों की रोशनी और वाद्य यंत्रों की देव धुनों के साथ बूढ़ी दिवाली का आगाज
मंडी/कुल्लू। देवभूमि हिमाचल प्रदेश अपनी सांस्कृतिक विरासत को लेकर संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। इसके तहत मंडी (Mandi) जिला के उपमंडल करसोग और कुल्लू (Kullu) जिला के आनी में सदियों से चली आ रही पौराणिक परंपरा के तहत बुधवार देर रात को विश्वविख्यात ममलेश्वर महादेव मंदिर ममेल में बूढ़ी दिवाली का पर्व श्रद्धापूर्वक और धूमधाम से मनाया गया। बूढ़ी दिवाली (Budhi Diwali) के पर्व पर करसोग के हजारों लोगों ने ममलेश्वर महादेव का आशीर्वाद लिया। इस दौरान भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने मंदिर परिसर में हाजरी लगाई। बूढ़ी दिवाली के अवसर पर वाद्य यंत्रों की तान पर लोगों ने जमकर नृत्य किया। ममलेश्वर महादेव मंदिर (Mamleshwar Mahadev Temple) में देव ल्याढी के प्रवेश करते ही बूढ़ी दीवाली का पर्व शुरू हो गया। देवता के कारदारों ने जैसे ही वाद्य यंत्रों की देव धुनों के साथ जलती मशालों को हाथों में लेकर पवित्र ममेल नगरी के प्रांगण में प्रवेश किया तो पूरी ममेल नगरी भक्ति रस में डूब गई।
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बूढ़ी दीवाली के इस महान और पवित्र पर्व पर लैड और कांणी मदलाह के लोग भी वाद्ययंत्रों की थाप पर नाचते और गाते हुए मशालों के साथ शिव मंदिर (Shiv Temple) पहुंचे। ममलेशवर महादेव मदिर के प्रांगण मे प्रज्वलित विशाल देव धूणा की परिक्रमा कर नाग कजौणी के देव रथ और लोगों ने एक साथ नृत्य किया। यह मनमोहक नजारा सिर्फ बूढ़ी दिवाली के अवसर पर साल में एक बार ही देखने को मिलता है। इस तरह बूढ़ी दीवाली पर ममलेश्वर महादेव मंदिर पूरी रात देवदुनों की वाद्ययंत्रों की मधुर धुनों से गूंजता रहा और इस दौरान पूजा अर्चना का लंबा दौर चलता रहा।
बूढ़ी दिवाली मनाने को लेकर मान्यता
बूढ़ी दिवाली का आयोजन दिवाली (Diwali) के एक महीन बाद किया जाता है। दूरदराज का क्षेत्र होने के कारण लोगों को भगवान राम के अयोध्या पहुंचने का पता नहीं चल पाया था। 14 साल का वनवास पूरा करने के बाद श्री राम के अयोध्या पहुंचने का समाचार यहां लोगों को एक महीने बाद मिला था। इसलिए हर साल दीवाली के 1 महीने बाद अमवस्या को करसोग के ममेल में स्थित महादेव मंदिर में बूढ़ी दीवाली का आयोजन किया जाता है।
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आनी क्षेत्र के विभिन्न गांवों में बुढी दिवाली की धूम
जिला कुल्लू के आनी के धोगी गांव में दो दिवसीय धोगी बूढ़ी दिवाली मनाई जा रही है। क्षेत्र के आराध्य देव शमशरी महादेव हर वर्ष मार्गशीष की कृष्ण अमावस्या को अपने प्राचीन मंदिर धोगी में बूढ़ी दिवाली मनाने पहुंचते हैंए जिससे क्षेत्रवासियों में काफी उत्साह देखने को मिलता है। प्राचीन रीति-रिवाजों अनुसार रात्रि के समय गांव के सैकड़ों लोगों ने वाद्य यंत्रों की धुनों (Instrumental Tunes) पर मशाल जलाकर प्राचीन गीत, जतियां गाकर मंदिर की परिक्रमा करके समाज में फैली अंधकार रूपी बुराइयों को प्रकाश रूपी दुर्जय शस्त्र से दूर करने का संदेश देकर सुख शांति की कामना की। इस दौरान दिन को मनमोहक नाटी ने सबका मन मोहा। पारंपरिक वेशभूषा में सजकर लढागी नृत्य दल ने महिला मंडल समेत खूब रौनक लगाई। वहीं बगड़ी घास से बने बांड के साथ देव-दानव का एक भव्य युद्ध देखने को मिला। जो समुद्र मंथन की याद दिलाता है। इसमें देवताओं की जीत हुई और समाज को अधर्म पर धर्म की विजय पताका लहराने का संदेश दिया गया।