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Note For Vote Case: वोट के बदले नोट लेने पर अब MP-MLA पर भी होगा मुकदमा, बदला 26 साल पुराना फैसला
Supreme Court: नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को ‘नोट फॉर वोट’ (Note For Vote) मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। SC ने अपने 26 साल पुराने फैसले को पलट दिया है और वोट के बदले नोट मामले में सांसदो-विधायकों (MP-MLA) को कानून से छूट देने से इनकार कर दिया है। अब पैसे लेकर सदन में भाषण या वोट देने पर सांसदों-विधायकों पर भी मुकदमा होगा। कोर्ट का कहना है कि संसदीय विशेषाधिकार के तहत रिश्वतखोरी (Bribery) की छूट नहीं दी जा सकती। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 7 जजों की संविधान पीठ इस मामले पर अपना फैसला सुनाया।
पिछला फैसला किया खारिज
फैसला सुनाते हुए CJI ने कहा कि नरसिम्हा राव मामले में SC ने साल 1998 में ‘वोट के बदले नोट’ मामले में सांसदों और विधायकों को मुकदमे से छूट देने का फैसला सुनाया था। वह, सार्वजनिक जीवन पर प्रभाव डालता है। इसलिए हम इस फैसले से असहमत है और सर्वसम्मति से इसे खारिज करते हैं।
भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी लोकतंत्र के लिए खतरा
सीजेआई ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 में रिश्वत से छूट का प्रावधान नहीं है क्योंकि रिश्वतखोरी आपराधिक कृत्य है और ये सदन में भाषण देने या वोट के लिए जरूरी नहीं है। नरसिम्हा राव मामले में दिए फैसले की जो व्याख्या की गई है, वो संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 के विपरीत है। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि विधायकों द्वारा भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी भारतीय संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को नष्ट कर देती है।
ये था पूरा मामला…….
दरअसल, ये मामला झामुझो के रिश्वतकांड में आए आदेश से जुड़ा हुआ है, जिस पर SC विचार कर रहा था। सांसदों पर नरसिम्हा सरकार के समर्थन में 1993 वोट देने का आरोप था। इस मामले पर 1998 में 5 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था जिसे आज सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया है। यह मुद्दा दोबारा तब उठा था, जब झामुझो की विधायक सीता सोरेन (MLA Sita Soren) ने अपने खिलाफ आपराधिक कार्रवाई को रद्द करने की याचिका दाखिल की थी। उन्होंने तर्क दिया था कि उन्हें सदन में कुछ भी कहने या किसी को भी वोट देने का अधिकार है, संविधान में उन्हें अभियोजन में छूट मिली है। दरअसल, सीता सोरन पर साल 2012 में राज्यसभा चुनाव में वोट के बदले रिश्वत लेने के आरोप लगे थे।
-नेशनल डेस्क