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मंडी में ना तो बीजेपी मना पा रही है जीत का जश्न और ना ही कांग्रेस
मंडी। हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों के परिणामों के बाद से मंडी पूरी तरह से ठंडी पड़ी हुई नजर आ रही है। मंडी जिला की बात करें या फिर शहर की तो यहां पर एक अजीब सी मायूसी दिखाई दे रही है। परिणामों के बाद जहां जीत के जश्न का माहौल होता था, वो बिल्कुल भी नहीं दिखाई दे रहा है। कारण, जो जीते हैं उनकी सरकार नहीं बनी है और जिनकी सरकार बनी है वो जीत नहीं पाए हैं। ऐसे में न तो भाजपा के प्रत्याशी अपनी जीत का जश्न मना पा रहे हैं और न ही कांग्रेसी सरकार बनने का। इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि मंडी ने जो जनादेश दिया, प्रदेश में सरकार उसके विपरीत बनी है। लोगों के बीच इस बात को लेकर दबी जुबान में चर्चा बड़े जोरों पर है कि अब मंडी की पूछ-पहचान होगी भी या नहीं। जो विकास के काम चले थे वो पूरे होंगे भी या नहीं। कोई नई योजना आएगी भी या नहीं।
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मंडी जिला से जीते इकलौते कांग्रेसी विधायक को मंत्रीपद मिलेगा या नहीं। जो दिग्गज हार गए उन्हें कैबिनेट रैंक के साथ बड़ी जिम्मेदारियां मिलेंगी या नहीं। क्योंकि ये वही मंडी है जो बीते पांच वर्षों में सीएम की सौगात से भरी-पूरी थी। अधिकारियों और नेताओं का यहां जमघट लगा रहता था, लेकिन अब सुनसान है। इन्हीं सब चर्चाओं के साथ लोगों की दिनचर्या निकल रही है। लेकिन राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि मंडी की कोई भी सरकार अनदेखी नहीं कर सकती।
वरिष्ठ लेखक खेम चंद शास्त्री और वरिष्ठ अधिवक्ता संजय मंडयाल का कहना है कि जो विधायक चुने हैं वो अपने क्षेत्र के विकास के लिए प्रतिबद्ध होने चाहिए, चाहे वे विपक्ष में ही क्यों न हो और जो सीएम बने हैं वो पूरे प्रदेश के बने हैं न कि क्षेत्र विशेष के। ऐसे में मंडी में अभी जो सन्नाटा या मायूसी दिख रही है वो जल्द ही दूर होने वाली है। वहीं, कांग्रेस और भाजपा में अभी से ही विकास कार्यों को लेकर ठनना शुरू हो गई है। मंडी जिला भाजपा के मीडिया प्रभारी प्रशांत शर्मा का कहना है कि सरकार ने शुरू से ही बदले की भावना से काम करना शुरू कर दिया है। पूर्व सरकार के फैसलों को पलटा जा रहा है। सरकार बीना किसी भेदभाव के विकास करे। वहीं, कांग्रेेस का कहना है कि जो नुकसान पार्टी ने यहां झेला है वो अपनी गलती से झेला है न कि जनता ने भाजपा को बहुमत दिया है। सीएम सुक्खू ने पहले ही कह दिया है कि मंडी की कमियों को वे स्वयं पूरा करेंगे। मंडी को राजनैतिक राजधानी भी कहा जाता है और इस जिले को कभी भी कोई राजनीतिक दल नजरअंदाज नहीं कर सकता। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि मंडी में छाई मायूसी भविष्य में कब तक बनी रहेगी और कौन इसे दूर करने के लिए रंगों की पहली बरसात किस रूप में करेगा।