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कोरोना से ज्यादा तबाही मचाएंगे आर्कटिक की बर्फ में दबे वायरस, वैज्ञानिकों की चेतावनी
वॉशिंगटन। जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण अगर आर्कटिक (Arctic) की बर्फ पिघली और उस बर्फ में लाखों साल से सोए वायरस (Virus) अगर बाहर निकल गए तो वे कोरोना (Covid 19) से भी भीषण तबाही मचा सकते हैं। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि जैसे-जैसे जलवायु गर्म हो रही है, उससे आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost) के पिघलने का खतरा बढ़ रहा है। आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट में टाइम ट्रैवल करने वाले सैकड़ों रोगाणु मौजूद हैं, जो पारिस्थितिक तंत्र के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। पर्माफ्रॉस्ट ग्रीनलैंड, अलास्का, साइबेरिया, तिब्बती पठार और उत्तरी कनाडा जैसे उच्च अक्षांश या उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मिट्टी, रेत और चट्टानों से बनी जमी हुई बर्फ की एक कठोर परत है। यह बर्फीली परत उन रोगाणुओं को फंसाती है, जो लंबे समय तक निष्क्रिय रहते हैं।
शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने 27 जुलाई को पीएलओएस कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में एक प्राचीन वायरस और आधुनिक बैक्टीरिया (Bacteria) के प्रभाव को डिजिटल रूप से तैयार किया। अध्ययन दल ने पता लगाया कि वायरस ने जीवाणु समुदाय की प्रजातियों की विविधता को कैसे प्रभावित किया। लगभग 1% प्राचीन वायरस ने डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र को तहस-नहस कर दिया। इसने या तो विविधता को 12% तक बढ़ा दिया या, इसके विपरीत, प्रजातियों की विविधता को 32% तक कम कर दिया। वायरल आक्रमणकारी न केवल जीवित रहे बल्कि समय के साथ विकसित हुए, जिससे सिस्टम असंतुलित हो गया।
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जटिल परिस्थितिकी का हुआ निर्माण
शोधकर्ताओं ने यह पता लगाने के लिए एविडा नामक सॉफ्टवेयर का उपयोग किया कि क्या रोगजनक जीवाणु किसी पारिस्थितिकी तंत्र में घुसपैठ करने में सफल होंगे। 2डी ग्रिड में जीवाणु जीव ऊर्जा और स्थान के लिए प्रतिस्पर्धा करने के लिए अपने पर्यावरण के साथ तालमेल बैठाते दिखे। जो जीवाणु इसमें कामयाब रहे, उन्हें अपने आप को बढ़ाने और जीवित रहने में महारत हासिल कर ली। ऐसा करने में इनके प्रजनन में थोड़ी-बहुत त्रुटियां हुईं, जिससे आनुवंशिक विविधता पैदा हुईं। इसके परिणामस्वरूप एक अधिक जटिल पारिस्थितिकी तंत्र उत्पन्न हुआ।
जोंबी वायरस को किया था फिर जिंदा
पिछले दो दशकों में, आर्कटिक क्षेत्रों में पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने के परिणामों को समझने के लिए और अधिक शोध किए गए हैं। जनवरी 2022 में नासा के अध्ययन में अचानक पिघलने की घटनाओं के दौरान कार्बन रिलीज के प्रभावों की जांच की गई और जीन-मिशेल क्लेवेरी की दशक भर की जांच संभावित संक्रामक रोगजनक पर्माफ्रॉस्ट में बंद हैं। ऐक्स-मार्सिले यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में मेडिसिन और जीनोमिक्स के एमेरिटस प्रोफेसर क्लेवेरी ने 2014 और 2015 में पर्माफ्रॉस्ट से “ज़ोंबी” वायरस को पुनर्जीवित किया था। उन्होंने और उनकी टीम ने अमीबा (Amoeba) को संक्रमित करने में सक्षम प्राचीन वायरस के पांच नए परिवारों की सूचना दी थी।