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रोचक है दून विस का इतिहास, जो एक बार हारा वो दोबारा नहीं जीत पाया
Last Updated on October 28, 2022 by sintu kumar
हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनावों का चारों तरफ शोर है। प्रदेश की सभी 68 सीटों के लिए हर उम्मीदवार प्रचार में जुटा है। सोलन जिला की बात करें तो इस जिला में कुल पांच विस क्षेत्र है। इन में दून विधानसभा क्षेत्र के बार में आप को बताने जा रहे हैं। इस सीट का इतिहास बड़ा रोचक है, यहां से विधायक बनने के बाद जो भी एक बार चुनाव हारा, वह फिर से नहीं जीत सका।
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इस बार कांग्रेस के राम कुमार चौधरी का मुकाबला बीजेपी के परमजीत सिंह पम्मी से है। इस मिथक को तोड़ पाएंगे या नहीं। वैसे तो 2012 में चौधरी यहां से जीत कर विधायक बने थे लेकिन 2017 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इस बार क्या होता है वो सब मतदाताओं को हाथ में है।
यह रहा इतिहास
दून सीट पर 1972 में कांग्रेस के लेखराम जीते। 1977 में लेखराम निर्दलीय राम प्रताप से हार गए। इसके बाद राम प्रताप कांग्रेस में आ गए और 1982 व 1985 में चुनाव जीतने में भी कामयाब रहे। 1990 में राम प्रताप फिर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और लज्जाराम चौधरी से हार गए। 1993 के विधानसभा चुनाव में लज्जा राम कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े और राम प्रताप निर्दलीय उतरे, लेकिन हार मिली। लज्जाराम दूसरी बार विधायक बने। 1998 और 2003 में भी लज्जा राम जीतकर विधायक बने। 2007 के चुनाव में लज्जाराम कांग्रेस की टिकट पर लड़े, लेकिन बीजेपी की विनोद चंदेल से हार गए। 2012 के चुनाव में फिर विनोद चंदेल बीजेपी की उम्मीदवार थीं, उन्हें कांग्रेस के राम कुमार चौधरी से हार मिली। 2017 में विधायक राम कुमार बीजेपी के परमजीत सिंह पम्मी से चुनाव हारे।
दून विधानसभा क्षेत्र में कुल 90,988 मतदाता हैं। 46,655 पुरुष और 44,329 महिला मतदाता हैं। वहीं 4 थर्ड जेंडर मतदाता भी हैं। अभी तक दून विधानसभा क्षेत्र में हुए विधानसभा चुनाव का औसत 70 से 78 फीसदी के बीच रहता है।