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बीजेपी-कांग्रेस को जुगनू की तरह टिमटिमा कर लुभाती 18 विधानसभा सीटें
शिमला। हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। हिमाचल में 68 विधानसभा सीटें हैं। इनमें से 18 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जो बीजेपी-कांग्रेस (BJP-Congress) की नैया पार भी लगा सकती हैं और डिबो भी सकती हैं। पांच साल पहले हुए विधानसभा चुनाव (assembly elections) यानी वर्ष 2017 में इन 18 सीटों पर जीत-हार का डिफरेंस केवल 120 वोटों से लेकर 1983 वोट तक रहा है। अब आंकड़े की बात करें तो इनमें से आठ सीटें बीजेपी के पास हैं तो नौ सीटें कांग्रेस के पास हैं। वहीं सीपीएम के विधायक राकेश सिंघा की बात करें तो इनकी जीत का मार्जिन भी 2000 वोट से कम ही था। ये 18 सीटें ऐसी हैं कि इन सीटों पर 60 से लेकर 1000 वोट भी यदि इधर से उधर हुए तो सीटिंग विधायक (Sitting MLA) का पत्ता साफ हो जाएगा। इन 18 सीटों में खुद की सीट को बचाए रखने के लिए एक विशेष प्रकार की रणनीति पर काम किया जा रहा है। इसी के साथ उतना ही दिमाग विरोधी दल को हराने के लिए तौर तरीकों पर भी इस्तेमाल किया जा रहा है। आंकड़ों का गणित किसी भी इलेक्शन के लिए अपनी भूमिका अदा करता है। क्योंकि इन आंकड़ों की बदौलत ही किसी की हार या जीत का समीकरण (the equation) समझ में आता है। और ये आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2017 के चुनाव में इन 18 सीटों पर बीजेपी-कांग्रेस मामूली मार्जिन पर हारी या जीती हैं। इसके अतिरिक्त हिमाचल विधानसभा की 68 विधानसभा सीटों में दस सीटें ऐसी भी हैं जहां का अंतर दस हजार से भी अधिक का रहा है। बड़े मार्जिन वाली ये दस सीटें बीजेपी के विधायकों ने जीती हैं।
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छह विधायकों की जीत का मार्जिन एक हजार से भी कम रहा है
वहीं छह विधायकों की जीत का मार्जिन एक हजार से भी कम रहा है। यह केवल 120 वोट लेकर एक हजार वोट तक के अंतर से जीते। किन्नौर के जगत सिंह नेगी सबसे 120 वोटों के मार्जिन से जीते। यही कारण रहा कि कांग्रेस पार्टी ने उनका टिकट आखिरी समय तक ही होल्ड पर रखा। वहां कैंडिडेट बदलने पर मंथन भी चलता रहा। मगर अंत में उन्हें ही टिकट मिल गया। वहीं कसौली में बीजेपी के डॉ राजीव सैजल भी 422 वोटों और बड़सर से कांग्रेस के इंद्रदत लखनपाल (Indradut Lakhanpal of Congress) भी केवल 439 वोटों से जीते। वहीं डलहौजी से कांग्रेस की प्रत्याशी आशा कुमारी (Congress candidate Asha Kumari) 556 वोट और सोलन से कांग्रेस धनीराम शांडिल (Dhaniram Shandil) भी केवल 671 वोटों के अंतर से ही जीत पाए। नगरोटा सीट से बीजेपी के अरुण कुमार (BJP’s Arun Kumar) की जीत का अंतर भी एक हजार वोट से कम रहा। वहीं जुब्बल-कोटखाई के नरेंद्र बरागटा 1062, शिमला शहरी से सुरेश भारद्वाज 1093 वोट, इंदौरा से रीता धीमान केवल 1095 वोट से जीतीं। वहीं लाहुल स्पीति से डॉ रामलाल मारकंडा 1478 वोट, जसवां-परागपुर से विक्रम सिंह 1862 वोटों से जीते थे।
नरेंद्र बरागटा के निधन के बाद 2021 में जुब्बल-कोटखाई सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी कांग्रेस के हाथों हार गई
नरेंद्र बरागटा के निधन के बाद 2021 में जुब्बल-कोटखाई सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी कांग्रेस के हाथों हार गई। वहीं श्री नैना देवी से राम लाल ठाकुर 1042 वोटए नालागढ़ से लखविंद्र राणा 1242 वोट और फतेहपुर में सुजान सिंह पठानिया 1284 वोट से जीत पाए थे। कुल्लू से सुंदर सिंह ठाकुर (Sunder Singh Thakur from Kullu) 1538 वोट और सुजानपुर से ठश्रच् के ब्ड फेस प्रेमकुमार धूमल को हराने वाले राजेंद्र राणा भी 1919 वोट से ही मैदान मार पाए। सुजान सिंह पठानिया के निधन के बाद वर्ष 2021 में फतेहपुर सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने अपनी सीट बरकरार रखी। इसी तरह ठियोग में सीपीएम के एकमात्र विधायक राकेश सिंघा भी सिर्फ 1983 वोट के अंतर से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। यदि पिछले विधानसभा चुनाव के दृष्टिकोण से देखें तो इस बार इन 18 विधानसभा क्षेत्रों कुछ वोट भी इधर से उधर हुए तो बाजी पलट सकती है। हालांकि बीजेपी मिशन रिपीट का दावा कर रही है। हालांकि इन 18 सीटों में से आठ सीटों पर बीजेपी के ही एमएलए हैं। प्रदेश में 5 साल बीजेपी की सरकार होने की वजह से उसके प्रति एंटी इनकमबेंसी भी है। वहीं कांग्रेस के 9 एमएलए पिछला चुनाव मुश्किल से जीत पाए थे। इन लोगों पर इस बार अपनी सीट बचाए रखने का दबाव है।