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पद्मश्री करतार सिंह बोले: युवा पीढ़ी को सिखाएंगे अपनी कला की बारीकियां
हमीरपुर। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ram Nath Kovind) से पद्मश्री पुरस्कार पाने वाले हमीरपुर के करतार सिंह सौंखले (Kartar Singh Sonkhle) युवा पीढ़ी को भी अपनी कलाकारी (Art) की बारीकियां सिखाना चाहते हैं। करतार सिंह सौंखले ने कहा कि अब वह भावी पीढ़ी को भी बैंबू आर्ट की अनूठी कलाकारी की बारीकियां सिखाएंगे। यदि बैंबू आर्ट भावी पीढ़ी तक पहुंच पाता है तो यह किसी क्रांति से कम नहीं होगा। इससे हिमाचल में पर्यटन (Tourist) को पंख लगेंगे तो वहीं दूसरी ओर युवाओं को रोजगार भी प्राप्त होगा। आपको बता दें कि करतार सिंह सौंखले ना केवल बांस की कारीगरी करते हैं, बल्कि उन्हें कांच की बोतलों के अंदर बांस की कलाकृतियां उकेरने में भी महारत हासिल है।
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राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलने के बाद अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पद्मश्री करतार सिंह सौंखले को लोग जानने और पहचानने लगे हैं। उनकी कला की कदर अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर की जा रही है। अमेरिका की एक महिला ने उनके द्वारा तैयार की गई कलाकृतियों को खरीदने की इच्छा जाहिर की है। यह महिला अमेरिका में ही इन अनूठी कलाकृतियों की एग्जिबिशन लगाना चाह रही हैं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित होने के बाद गुरुवार को वह अपने घर पर पहुंचने पर करतार सिंह सौंखले ने यह खुलासा किया है। साथ ही उन्होंने इस सम्मान को हिमाचल की जनता को समर्पित किया है। करतार सिंह सौंखले कहा कि अमेरिका की एक महिला के तरफ से इन कलाकृतियों को खरीदने की इच्छा व्यक्त की गई है, लेकिन उनके पास व्यवसायिक स्तर पर इतनी कलाकृतियां तैयार नहीं है यदि भविष्य में व्यवसायिक स्तर पर इस काम को आगे बढ़ाया जा सका तो वह इस पर जरूर विचार करेंगे।
2000 में शुरू की थीं कांच की बोतलों में कलाकृतियां बनाना
आप को बता दे कि 1959 में हमीरपुर (Hamirpur) जिला की नारा पंचायत के रटेहड़ा गांव में जन्मे करतार सिंह सौंखले बचपन से ही बांस की कारीगरी में रुचि रखते थे। साल 2000 में उन्होंने कांच की बोतलों के अंदर बांस की कलाकृतियां बनानीं शुरू की। उनकी इस बेजोड़ कारीगरी को देखकर हर कोई हैरान रह जाता है। उन्होंने कांच की बोतलों अंदर पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय एपीजे अब्दुल कलाम की कलाकृतियां बनाई हैं।
इसके अलावा एफिल टावर के साथ कई ऐतिहासिक धरोहरों और इमारतों की कलाकृतियां भी उन्होंने अपनी कारीगरी के माध्यम से कांच की बोतलों में बनाई हैं। वह एनआईटी हमीरपुर में चीफ फार्मसिस्ट के पद से मार्च 2019 में सेवानिवृत्त हुए हैं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गलोड़ स्कूल से पूरी हुई और इसके बाद उन्होंने अपनी ग्रेजुएशन डिग्री कॉलेज बिलासपुर से पूरी की थी। इसके बाद फैमिली एंड वेलफेयर विभाग के अंतर्गत उन्होंने डी फार्मा की पढ़ाई भी पूरी कीए लेकिन बांस की कारीगरी के हुनर को उन्होंने अपने अंदर जिंदा रखा और नौकरी के दौरान ही वह कलाकृतियां बनाने में जुटे रहे। उन्हें अपने इन कार्यों के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से भी नवाजा जा चुका है। एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड ने उन्हें ग्रैंड मास्टर, इंडियन बुक ऑफ रिकॉर्ड ने उन्हें एक्सीलेंसी अवॉर्ड से सम्मानित किया है।
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