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हाईकोर्ट में निर्दलीय विधायकों की याचिका पर कल फिर होगी सुनवाई
शिमला। हिमाचल हाईकोर्ट (High Court)में आज तीन निर्दलीय विधायकों के इस्तीफे (Resignations of three independent MLAs) मंजूर कराने के लिए स्पीकर को निर्देश देने वाली याचिका पर सुनवाई शुरू हुई लेकिन आज बहस नहीं हो सकी। वहीं मामले की सुनवाई एक बार फिर से गुरुवार को चीफ जस्टिस एमएस रामचंद्र राव की बैंच में सुनवाई होगी। विधानसभा स्पीकर कुलदीप सिंह पठानिया (Speaker Kuldeep Singh Pathania) को भी कल कोर्ट के नोटिस का जवाब देना है। मुख्य न्यायाधीश एम एस रामचंद्र राव और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ के समक्ष इस मामले पर सुनवाई हुई। याचिका में विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया को निजी तौर पर भी पार्टी बनाया गया है परंतु कोर्ट ने उन्हें निजी तौर पर नोटिस जारी नहीं किया है।
स्वतंत्र इच्छा से बड़ा क्या सबूत
प्रार्थियों के अनुसार जब उन्होंने खुद जाकर स्पीकर के समक्ष इस्तीफे दिए, राज्यपाल(Governor) को इस्तीफे की प्रतिलिपियां सौंपी, विधानसभा के बाहर इस्तीफे मंजूर ना करने को लेकर धरना दिया और हाईकोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया तो उन पर दबाव में आकर इस्तीफे देने का प्रश्न उठाना किसी भी तरह से तार्किक नहीं लगता और इसलिए इससे बढ़कर उनकी स्वतंत्र इच्छा से बड़ा क्या सबूत हो सकता है। प्रार्थियों का कहना था कि यदि स्पीकर अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए उनके इस्तीफे मंजूर नहीं करता तो हाईकोर्ट के पास यह शक्तियां हैं कि वह जरूरी आदेश पारित कर उनके इस्तीफों को मंजूरी दें।
22 मार्च को विधानसभा अध्यक्ष को दिए थे इस्तीफे
मामले के अनुसार देहरा से निर्दलीय होशियार सिंह , नालागढ़ से केएल ठाकुर और हमीरपुर से आशीष शर्मा ने विधानसभा की सदस्यता से 22 मार्च को विधानसभा अध्यक्ष तथा सचिव को अपने इस्तीफे सौंपे थे। इस्तीफों की एक-एक प्रति राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल को भी दी थी। राज्यपाल ने भी इस्तीफों की प्रतियां विधानसभा अध्यक्ष को भेज दी थीं। प्रार्थियों का आरोप है कि विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने इन्हें मंजूरी नहीं दी और इस्तीफे के कारण बताने के लिए 10 अप्रैल तक स्पष्टीकरण देने को कहा। इन विधायकों ने कारण बताओ नोटिस को खारिज कर इस्तीफे मंजूर करने की गुहार लगाई है। निर्दलीय विधायकों का कहना है कि जब उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष को व्यक्तिगत तौर पर मिलकर इस्तीफे दिए तो उनके इस्तीफे मंजूर की बजाए उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी करना असवैंधानिक है।