- Advertisement -
डॉ. विशाल ने कहा कि अभी तक अगर कोई व्यक्ति अपराध में लकड़ी का प्रयोग करता है, तो वह सुबूतों के अभाव में कोर्ट (Court) से बच जाता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि कोर्ट में इस बात का प्रमाण नहीं हो पाता कि किस लकड़ी से अपराध हुआ है। इस मैथड से साबित कर सकते हैं कि अपराध में कौन सी लकड़ी का प्रयोग हुआ। इसके साथ ही लकड़ियों की तस्करी को रोकने में भी यह विधि मददगार साबित होगी। पीयू संकाय इस क्षेत्र में आगे के अनुसंधान की खोज के बारे में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से संपर्क करने की योजना बना रहा है। यह विधि अन्य सभी तकनीकों की तुलना में लकड़ी के विश्लेषण पर बेहतर और सटीक परिणाम देती है। यह एक पायलट प्रोजेक्ट था, वे हर राज्य की जानकारी के लिए एक डाटाबेस बना सकते हैं।
डॉ. विशाल के अनुसार शोध के दौरान लैब में इंफ्रा रेड स्टेटोस्कोपी विधि (Infra red statoscopy method) से लकड़ी के विभिन्न कंपोनेंट की एक खास डिटेक्टर उपकरण से जांच की गई। जिसमें लकड़ी की विभिन्न प्रजातियों के बारे में बारीकी से जानकारी हासिल करनी पड़ती है। वारदात के समय प्रयोग लकड़ी की जांच से उसके बारे में विस्तार से जानकारी हासिल की जा सकती है। उन्होंने बताया कि पायलट प्रोजेक्ट के तहत शुरुआत में 24 लकड़ी की प्रजातियों को शोध में शामिल गया है। जिसमें 87.5 फीसद रिजल्ट बिल्कुल सही आए। फिलहाल सैंपल छोटा है, लेकिन इस प्रोजेक्ट को बड़े लेवल पर किया जाएगा, तो इसका काफी फायदा मिलेगा। इस शोध को व्यवहारिक रूप से लाने और सफल बनाने के लिए बड़े स्तर पर डाटा बेस तैयार करना होगा। इस शोध पर करीब एक साल से काम चल रहा था जिसके काफी अच्छे रिजल्ट मिले हैं।
- Advertisement -