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क्यों हमेशा उठता है ये सवाल – भंडारे या लंगर में नहीं खाना चाहिए
हम अकसर देखते हैं कि भंडारे या लंगर में जरूरतमंद ही नहीं बल्कि अच्छा खासा कमाने वाले या रसूखदार लोग भी भोजन करते हैं। मंदिरों (Temples) में तो भंडारे करवाने के लिए कई कई साल की वेटिंग मिलती है। लेकिन हमेशा से ही अक्सर सभी लोग एक सवाल उठाते हैं कि क्या भंडारे या लंगर का प्रसाद खाना चाहिए। विद्वान और धर्म आचार्य भी इस सवाल का अलग-अलग जवाब देते हैं। कुछ की राय है कि भंडारे या लंगर( Bhandara or langar) में अवश्य खाना चाहिए क्योंकि यह देवता का प्रसाद होता है तो कुछ आचार्य इसे खाने से इंकार भी करते हैं।
इसलिए है ये राय कि भंडारे में नहीं खाना चाहिए
ऐसे आचार्यों के अनुसार धनी लोग धार्मिक स्थलों (Religious place) पर भंडारे या लंगर का आयोजन करते हैं। ऐसा करते समय वे वहां आने वाले असहाय (Helpless) तथा निर्धन लोगों की सुविधा का ध्यान रखते हुए उन्हें भोजन उपलब्ध करवाते हैं। निर्धन लोगों को भोजन कराकर वे अखंड पुण्य कमाना चाहते हैं। इन हालात में कहा जा सकता है कि ऐसे भंडारे उन लोगों की सहायता के लिए होते हैं जो गरीब या फिर विकलांग है या फिर भोजन नहीं खरीद सकते हैं। वे लोग भंडारे या लंगर में जाकर अपना पेट भर सकते हैं। लेकिन अगर कोई स्वस्थ या अच्छा खासा कमाने वाला सक्षम व्यक्ति भंडारों में जाकर भोजन करेगा तो वह निश्चित रूप से उन लोगों के हिस्से का भोजन खाएगा। सरल शब्दों में कहे तो ऐसा करने से एक निर्धन गरीब को भूखा रहना पड़ सकता है।
लेकिन अगर ऐसा करें तो भंडारा या लंगर खाने से कोई दोष नहीं
इसी वजह से भंडारों में खाना नहीं खाना चाहिए और वो भी तब जब जब आप सक्षम हों। लेकिन हमें भंडारे या लंगर करवाने में अपनी हैसियत के मुताबिक सहायता देनी चाहिए। अगर पैसे से मदद भी नहीं कर सकते तो तो हम वहां पर सेवा भी कर सकते हैं। धनराशि देने या सेवा करने के बाद वहां भोजन करने में कोई दोष नहीं लगता और हम गरीबों को खाना खिलाने के पुण्य के भागी बनते हैं।
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