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एक अनोखा मंदिर ऐसा जहां पांडव चाहते थे इसके दरवाजे सीधे स्वर्ग में खुलें
कांगड़ा। आज हम आपको एक ऐसे ऐतिहासिक मंदिर के बारे में बताएंगे जिसके इतिहास का अंदाजा तक कोई नहीं लगा पाया। कुछ कहानिया हैं, दन्त कथाएं और मंदिर के गर्भ गृह में अभी भी श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण के साथ विराजमान हैं। ये मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के मसरूर गांव में स्थित है। कुल 15 बड़ी चट्टानों पर ये मंदिर बना हैं जिसे हम रॉक कट टेंपल के नाम से जानते हैं। यूं तो भारत में बहुत सी ऐसी जगहें जो कि ऐतिहासिक हैं। मगर वो ऐतिहासिक तो जरूर हैं मगर उनके बारे में कुछ ना कुछ जानकारी अवश्य मिलती है। आज हम आपको एक ऐसे रहस्यमयी एक ही चट्टान को काटकर बनाए गए मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका आज तक यह पता नहीं चल पाया कि आखिर इस मंदिर को किसने बनाया और इसका कारीगर कौन था।
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हां कयास भर लगाए जा सकते हैं मगर सटीक जानकारी नहीं है। जी हां आज हम आपको हिमायलयन पिरामिड के नास से विख्यात कला के बेजोड़ नमूने रॉक टेंपल के बारे में बताने जा रहे हैं। यह मंदिर उत्तरी भारत में एकलौता ऐसा मंदिर है जिस पर खूबसूरत पत्थरों की नक्काशी की गई है। इन्हें अजंता-एलोरा हिमाचल भी कहा जाता है। यहां पहाड़ काटकर गर्भ गृह, मूर्तियां, सीढ़ियां और दरवाजे बनाए गए हैं। मंदिर के बिलकुल सामने मसरूर झील है। यह झील मंदिर की खूबसूरती को और भी चांद लगा देती है। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने करवाया था।
जब पांडव अज्ञातवास में थे तभी उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर को सर्वप्रथम सन 1913 में एक अंग्रेज एचएल स्टालबर्थ ने नोटिस किया था। मंदिर की दीवार पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश और कार्तिकेय के साथ अन्य देवी देवताओं की आकृति देखने को मिल जाती हैं। बलुआ पत्थर को काटकर बनाए गए इस मंदिर को 1905 में आए भूकंप के कारण काफी नुकसान भी हुआ था। यह मंदिर कांगड़ा से कुछ दूरी पर मसरूर नामक जगह पर स्थित है। धर्मशाला.नगरोटा सूरियां रोड पर आने वाले स्टेशन पीरबिंदली से इस चट्टान के मंदिर के लिए सड़क जाती है जो पीरबिंदली से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। धर्मशाला से इसकी दूरी लगभग 50 किलोमीटर है और शायद कांगड़ा से भी उतनी दूरी पर स्थित है। इस राक टैंपल की बात करें तो यह टैंपल पूरी तरह से रहस्य से भरा है।
यह कब बना और किसने बनाया इसकी ठीक से जानकारी नहीं है, मगर इस टेंपल को 8वीं सदी के आसपास का बना हुआ माना जाता है। माना यह भी जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने अपने वनवास काल के दौरान किया था। एक किंवदंती के अनुसार पांडव इस मंदिर का निर्माण इस ढंग से करना चाहते थे कि इसके दरवाजे सीधे स्वर्ग में खुलें और मनुष्य को मृत्यु का असहनीय कष्ट न सहना पडे। इस टेंपल को सबसे पहले सन 1913 को एक अंग्रेज एच एल स्टालबर्थ ने नोटिस किया था। उसके बाद ही वर्तमान में यह लाइमलाइट में आया। यह टेंपल मसरूर नामक स्थान पर एक रेतीली पहाड़ी पर स्थित है, जो समुद्र तल से लगभग 2500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह रहस्यों से भरा भारत तो क्या विश्व का इकलौता मंदिर है।
मंदिरों के समूह का मुख धौलाधार पर्वतों की ओर है। इसे भारतीय नगर वास्तु शैली से तराशा गया है। सबसे रहस्य की बात यह है कि यह मंदिर एक ही चट्टानी पत्थर से बनाया गया है। कहीं भी ईंट-गारे का इस्तेमाल नहीं हुआ है। यहां तक इसके दरवाजे भी एक ही पत्थर को काटकर बनाए गए हैं। वास्तव में यह एक मंदिरों का समूह है और माना जाता है कि यह शिव मंदिर है। इसके गर्भगृह में मूर्तियां विराजमान हैं जिनमें सीताराम की मूर्तियां भी हैं। एक अनुमान के अनुसार इसके 8 के करीब द्वार हैं, जिनमें एक ही चट्टान को काटकर सीढ़ियां भी बनाई गई हैं। जैसा कि बताया कि इसके निर्माण की ठीक से कोई तारीख मालूम नहीं है, मगर इसकी खोज सन 1875 के आसपास मानी जाती है। ठीक इसके आगे एक झील बनाई गई है, जो उसकी खूबसूरती को और भी चार चांद लगाती है। बताया तो यह भी जाता है कि पांडवों ने इसके निर्माण वाली रात जो रोटियां बनाई थीं, वो भी पत्थर में तब्दील हो गई थीं। इसकी आस्था विदेशों तक है। यहां इंग्लैंड, जर्मन, इटली, फ्रांस, और अन्य जगहों से टूरिस्ट आते हैं।