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SC ने अनुबंध सेवाओं को पेंशन के लिए गिने जाने के हाईकोर्ट के निर्णय पर लगाई मुहर
शिमला। अनुबंध सेवाओं को पेंशन के लिए गिने जाने के हाईकोर्ट के निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मुहर लगा दी है। इस फैसले के साथ ही उन सैंकड़ो कर्मियों को पेंशन का लाभ मिल जाएगा जिनकी कुल नियमित सेवा न्यूनतम पेंशन के लिए भी कम थी और अब अनुबंध वाली सेवा को भी पेंशन के लिए गिन लिया जाएगा। न्यायाधीश एस रवींद्र भट्ट और न्यायाधीश अरविंद कुमार की पीठ ने राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिए कि वह उन सभी कर्मचारियों से विकल्प लें जो वर्ष 2003 से पूर्व अनुबंध पर थे और 2003 के पश्चात नियमित किए गए। उसके तुरन्त बाद उनकी पेंशन का निर्धारण करें। अदालत ने सारी प्रक्रिया पूरी करने के लिए सरकार को चार महीनों का समय दिया है।
पारिवारिक पेंशन के लिए दायर याचिका की सुनवाई के बाद दिए थे आदेश
हाईकोर्ट ने वर्ष 2019 को आयुर्वेदिक डॉक्टर की विधवा शीला देवी द्वारा पारिवारिक पेंशन के लिए दायर याचिका की सुनवाई के पश्चात अनुबंध सेवा को पेंशन के लिए गिने जाने के आदेश दिए थे। याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार प्रार्थी के पति को वर्ष 1999 में आयुर्वेदिक डॉक्टर के पद पर अनुबन्ध के आधार पर नियुक्त किया गया था। वर्ष 2009 को उसकी सेवाओं को नियमित कर दिया गया था। 23 जनवरी 2011 को प्रार्थी के पति का देहांत हो गया था। प्रार्थी की ओर से राज्य सरकार के समक्ष पेंशन के लिए आवेदन दिया गया था। जिसे राज्य सरकार की ओर से यह कहकर रद्द कर दिया गया था कि प्रार्थी के पति को अनुबंध के आधार पर नियुक्ति प्रदान की गई थी और अनुबंध के आधार पर दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए नहीं गिना जा सकता। खंडपीठ ने प्रदेश उच्च न्यायालय के विभिन्न मामलों में दिए गए फैसलों का अवलोकन करने के पश्चात यह पाया कि प्रार्थी का पेंशन दिए जाने के लिए दायर किया गया मामला जायज है। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया था कि जीवन के खुशहाली के दिनों में कम सैलरी पर अनुबंध के आधार पर दी गई सेवाओं से राज्य सरकार को ही लाभ हुआ है। इस दौरान दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए न गिना जाना राज्य सरकार के अनुचित व्यापारिक व्यवहार को दर्शाता है। जिसकी कानून अनुमति प्रदान नहीं करता है। न्यायालय ने प्रार्थी के पति द्वारा अनुबंध के आधार पर दी गई सेवाओं को पेंशन के लिए न्याय संगत पाते हुए राज्य सरकार को यह आदेश जारी किए थे कि वह प्रार्थी उसके द्वारा दाखिल की गई याचिका के 3 वर्ष पहले से पेंशन की अदायगी करें।
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