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समान नागिरक संहिता पर SC की टिप्पणी, रुख स्पष्ट करे बीजेपी
Last Updated on September 6, 2022 by sintu kumar
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र सरकार से देश के समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने की व्यवहार्यता पर तीन हफ्ते के अंदर अपना रुख स्पष्ट करने के लिए कहा है। देश के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की एक पीठ शादी की उम्र, तलाक के आधार, उत्तराधिकार और गोद लेने के लिए कानूनों में एकरूपता की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
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पीठ ने कहा कि ये याचिकाएं तलाक, शादी, गोद लेने, उत्तराधिकार और मेंटेनेंस कानूनों की मांग कर रही हैं। इन बातों में क्या अंतर है? ये सभी समान नागरिक संहिता के पहलू हैं। याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तीन हफ्ते के अंदर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है।
वहीं, वकील और बीजेपी के नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय और एक अन्य याचिकाकर्ता लुबना कुरैशी द्वारा दायर याचिकाओं के एक समूह ने विभिन्न धर्मों के लिए प्रचलित तलाक, विवाह, गोद लेने, उत्तराधिकार और मेंटेनेंस पर विभिन्न कानूनों में कमियों की तरफ इशारा किया है। अश्विनी कुमार ने अपनी याचिका में एकरूपता लाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि व्यभिचार के लिए हिंदुओं, ईसाइों और पारसियों के लिए एक आधार है, लेकिन मुसलमानों के लिए नहीं है। उन्होंने कहा कि इसी तरह कुष्ठ बीमारी हिंदुओं और मुसलमानों के लिए तलाक का आधार है, लेकिन ईसाइयों और पारसियों के लिए नहीं। उन्होंने कहा कि कम उम्र में शादी हिंदुओं के लिए तलाक का आधार है, लेकिन ईसाइयों, मुसलमानों और पारसियों के लिए नहीं है।
इतना ही नहीं उपाध्याय की याचिका में ये भी कहा गया है कि सभी धर्मों की महिलाओं के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि धार्मिक प्रथाएं जो उन्हें उनके मौलिक अधिकारों से वंचित करती हैं, उनकी रक्षा नहीं की जानी चाहिए। वहीं, केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ये अनिवार्य रूप से कानून का सवाल होगा। अगर जरूरत पड़ी तो हम तीन हफ्तों के अंदर जवाब देंगे।
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याचिकाओं का विरोध
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और एक मुस्लिम महिला अमीना शेरवानी ने शीर्ष अदालत में इन याचिकाओं का विरोध किया है। उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले दरवाजे से यूसीसी लाने की कोशिश की जा रही है मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि उपाध्याय ने 2015 में शीर्ष अदालत में दायर एक रिट याचिका में इसी तरह की मांग की थी, जिसे उन्होंने बाद में वापस ले लिया था। उन्होंने कहा कि उपाध्याय ने बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष यूसीसी को लागू करने की मांग के लिए एक याचिका दायर की थी, जो अभी तक लंबित है। उन्होंने कहा कि कोर्ट को याचिकाकर्ता से उनकी पिछली याचिका का रिकॉर्ड तलब करने के लिए कहा जाना चाहिए।
उपाध्याय ने पीठ से कहा मैं यूसीसी की मांग नहीं कर रहा हूं। इन याचिकाओं में मैंने देश में मौजूद विसंगतियों को दिखाने की कोशिश की है, जो विभिन्न धर्मों की महिलाओं पर शादी, तलाक, गोद लेने, रखरखाव और उत्तराधिकार पर अलग-अलग कानून लागू करती हैं। ये अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (भेदभाव के खिलाफ अधिकार) और 21 (जीवन और स्वतंत्रता) के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। जिस पर पीठ ने कहा कि वैवाहिक मुद्दा भी यूसीसी के पहलुओं में से एक ही है।