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महाराष्ट्र से निकला Truck 10 महीने में पांच राज्यों से 1700 KM की यात्रा के बाद केरल पहुंचा
Last Updated on July 18, 2020 by Deepak
नई दिल्ली। महाराष्ट्र ( Maharashtra ) से निकले एक ट्रक (Truck) को केरल (Kerala) पहुंचने में 10 महीने का वक्त लग गया। करीब 10 महीने में 1700 किलोमीटर की यात्रा के बाद महाराष्ट्र के नासिक से निकला ट्रक आखिरकार तिरुवनंतपुरम पहुंचा। साधारण तौर पर एक ट्रक इतनी दूरी को 5 से 7 दिन में कवर कर लेता है, लेकिन इसे पहुंचने में 10 महीने लग गए। इसके पीछे की वजह यह है कि 74 टायर लगे इस वीआईपी ट्रक पर 70 टन वजन वाली मशीन एयरोस्पेस ऑटोक्लेव राखी हुई थी। जिसे शनिवार को गंतव्य स्थल केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम के विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (VSSC) पहुंचाया गया।
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पांच राज्यों के हर जिले से जब ये गाड़ी गुजरती थी तो किसी और गाड़ी को वहीं से गुजरने की इजाजत नहीं दी जाती थी और इसके साथ सुरक्षा में पुलिस की गाड़ी होती थी। कुछ जगहों पर गड्ढे वाली सड़कों की मरम्मत की गई, पेड़ों की कटाई हुई और बिजली खंभों का हटाया गया ताकि ट्रक के आगे जाने का रास्ता बनाया जा सके। चूंकी इसमें इतना वजन था और इस ट्रक में 74 टायर थे लिहाजा इसकी चाल काफी धीमी थी। रोजाना ये ट्रक सिर्फ 5 किलोमीटर की दूरी तय करता था। ट्रक की यह यात्रा पिछले साथ 1 सितंबर को शुरू हुई थी। इस ट्रक पर सवार एक कर्मचारी ने इस पूरी यात्रा के बारे में बताते हुए कहा कि लॉकडाउन ने हमारे मूवमेंट को कठिन कर दिया। आंध्र प्रदेश में लॉकडाउन की वजह से एक महीने तक गाड़ी को पकड़ लिया गया। बाद में कंट्रैक्ट एजेंसी को दखल देना पड़ा। लेकिन, उसके बाद भी यह एक बड़ी चुनौती थी। वोल्ववो एमएम सीरिज ट्रक के साथ हमारी 30 सदस्यीय टीम में इंजीनियर्स और मैकेनिक्स भी मौजूद थे।
महिला ने रास्ते में टोककर कहा- रॉकेट भेजने से बेहतर कोविड का वैक्सीन बनाना होगा
उन्होंने आगे बताया कि मशीन की ऊंचाई 7.5 मीटर है और इसकी चौड़ाई 7 मीटर है। इसकी वजह से चेसिस काफी मजबूत बनाया गया होगा। कुछ जगहों पर इसके आगे जाने के लिए सड़कें चौड़ी की गई और पेड़ काटे गए। दो जगहों पर पुल न टूटे इसके लिए स्पेशल आयरन गिर्डर्स को रखा गया था। उन्होंने कहा कि केरल में एक बुजुर्ग महिला आई और हम से कहने लगी कि रॉकेट भेजने से बेहतर कोविड का वैक्सीन बनाना होगा। हमेशा हम में से अधिकांश लोग पूरे रास्ते चलते रहे और हमारे लिए यह एक चुनौतीपूर्ण अनुभव था। विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के एक अधिकारी ने इस बारे में जानकारी देते हुए आगे कहा कि हैवी मशीन को अलग-अलग नहीं किया जा सकता है। ऑटोक्लेव का इस्तेमाल कई कार्यक्रमों के लिए बड़े एयरोस्पेस प्रोडक्ट के निर्माण में होगा और उम्मीद है कि कुछ आवश्यक संशोधन के बाद इस महीने उसे शामिल कर लिया जाएगा।