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शिमला: धामी में हुआ पत्थर मेला; इंसानी लहू से किया मां भीमा काली का अभिषेक
शिमला। यहां से 30 किलोमीटर दूर धामी में हर साल की तरह इस साल भी सोमवार को पत्थर मार मेला (Fair) लगा। करीब 300 साल पुरानी मान्यता के तहत दो समुदायों के बीच जमकर पत्थर (Stone Pelting) चले। इस पर्व में कई लोग पत्थर लगने से लहूलुहान हुए और उन्होंने मां भीमा काली और सती माता के चबूतरे पर खून से अभिषेक किया।
दिवाली के अगले दिन होने वाले इस अनोखे पर्व में एक ओर राज परिवार की तरफ से जठोली, तुनड़ू और धगोई और कटेड़ू खानदान की टोली थी, जिनके सामने जमोगी खानदान की टोली के सदस्य थे। दोनों टोलियों ने एक-दूसरे पर पत्थर चलाए। यह खेल तब तक चलता है, जब तक दोनों टोलियों में से किसी एक के सिर पर पत्थर (Injured) लगने से चोट नहीं लगे। किसी एक के घायल होते ही खेल रोक दिया जाता है और घायल के खून (Blood) से मां भीमा काली और सती माता के चबूतरे का अभिषेक किया जाता है।
महिलाओं की एंट्री नहीं
सोमवार को दोपहर बाद राज परिवार और राज पुरोहितों ने श्री नरसिंह भगवान के मंदिर में पूजा-अर्चना की। उसके बाद जन समूह ढोल नगाड़ों के साथ खेल चौरा (Khel Chaura) के लिए रवाना हुआ। इस समूह में गलोग, पलानिया और आसपास के स्थानीय लोग शामिल होते हैं। सभी लोग मां सती के स्मारक के पास एकत्रित होते हैं। दोनों टोलियां पूजा-अर्चना के बाद पत्थर का खेल शुरू करते हैं। इस मेले में महिलाएं (Women Are Not Permitted) भाग नहीं लेतीं। वे दूर से मेले को देख सकती हैं।
मानव बलि रोकने के लिए सती हुई रानी
मान्यता है कि धामी रियासत में मां भीमा काली के मंदिर में हर साल दिवाली के दूसरे दिन मानव बलि दी जाती थी। लेकिन तत्कालीन रियासत के राणा परिवार की रानी इस बलि प्रथा को रोकना चाहती थी। इसके लिए रानी यहां के चौराहे में सती हो गई। उसके बाद नई पंरपरा शुरू हुई। इस स्थान का खेल का चौरा रखा गया है और यहां पर ही पत्थर का मेला मनाया जाता है। धामी रियासत के राज परिवार की अगुवाई में सदियों से यह परंपरा निभाई जा रही है। राज परिवार के उत्तराधिकारी राणा जगदीप सिंह ने बताया कि लोग श्रद्धा और निष्ठा से इस इस परंपरा को निभाते हैं। इस पर्व में धामी, शहराह, कालीहट्टी, सुन्नी, अर्की दाड़लाघाट, चनावग, पनोही और शिमला के आसपास के क्षेत्र के लोग भाग लेते हैं।