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बसंत पंचमी पर क्यों पहनते हैं पीले वस्त्र, जानिए वजह
बसंत ऋतु को पीले रंग का प्रतीक माना जाता है। इस ऋतु में ना ज्यादा ठंड का एहसास होता है ना गर्मी का। इस ऋतु में सूरज ना तो तेज होता है और ना ही हल्का। इस मौसम में चारों तरफ पीली सरसों के फूल से लहलहाते खेत दिखाई देते हैं जो मन में ऊर्जा भर देते हैं। सिर्फ यही नहीं पेड़ों पर ताजी नई पत्तियां भी आने लगती हैं। इसी कारण से बसंत ऋतु में पीले रंग का विशेष महत्व होता है। पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार बसंत पंचमी के दिन पीले रंग को पहनना बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन लोग ना सिर्फ पीले वस्त्र पहनते हैं बल्कि पीले रंग के भोजन भी ग्रहण करते हैं। पीले लड्डू और केसरयुक्त खीर बना कर मां सरस्वती और भगवान कृष्ण और भगवान विष्णु को अर्पित किया जाता है।
मां सरस्वती की आरती :
ऊं जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता।
सद्गुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥
ऊं जय..
चंद्रवदनि पद्मासिनी, ध्रुति मंगलकारी।
सोहें शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी॥
ऊं जय..
बाएं कर में वीणा, दाएं कर में माला।
शीश मुकुट मणी सोहें, गल मोतियन माला॥
ऊं जय..
देवी शरण जो आएं, उनका उद्धार किया।
पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया॥
ऊं जय..
विद्या ज्ञान प्रदायिनी, ज्ञान प्रकाश भरो।
मोह, अज्ञान, तिमिर का जग से नाश करो॥
ऊं जय..
धूप, दीप, फल, मेवा मां स्वीकार करो।
ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो॥
ऊं जय..
मां सरस्वती की आरती जो कोई जन गावें।
हितकारी, सुखकारी, ज्ञान भक्ती पावें॥
ऊं जय..
जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता।
सद्गुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥
ऊं जय..
ऊं जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता ।
सद्गुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥
बंसत पंचमी के दिन क्या न करें :
इस दिन काले रंग के कपड़े धारण न करें और ना ही विद्या देने वाली चीजों का अपमान करें। ये हरियाली का त्योहार माना जाता है इसलिए इस पर्व पर फसलों की कटाई भी नहीं की जाती। वसंत पंचमी के दिन तामसिक भोजन न करें और ना ही मदिरा पान करें। 29 व 30 जनवरी 2020 को दो दिन रहेगी वसंत पंचमीः इस दिन वैवाहिक जीवन के लिए सर्वार्थ सिद्धि और रवि योग का संयोग बनेगा, जो परिणय सूत्र में बंधने के लिए श्रेष्ठ है। हिन्दू पंचागों में इस बार बसंत पंचमी 29 और 30 जनवरी को मनेगी। इस वर्ष की बसंत पंचमी की तिथि बुधवार सुबह 10.45 बजे से शुरू होगी जो गुरुवार दोपहर 1.19 बजे तक रहेगी। धर्मशास्त्रों के अनुसार बसंत पंचमी पर्व 29 जनवरी को मानना श्रेष्ठ होगा।
बसंत पंचमी का महत्त्व –
पंचमी बसंत का पौराणिक महत्त्व रामायण काल से जुड़ा हुआ है। जब मां सीता को रावण हर कर लंका ले जाता है तो भगवान श्री राम उन्हें खोजते हुए जिन स्थानों पर गए थे उनमें दंडकारण्य भी था। यहीं शबरी नामक भीलनी रहती थी। जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध बुध खो बैठी और प्रेम वश चख चखकर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी। कहते हैं कि गुजरात के डांग जिले में वह स्थान आज भी है जहां शबरी मां का आश्रम था। बसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी वहां पधारे थे। आज भी उस क्षेत्र के वनवासी एक शिला को पूजते हैं, जिसमें उनकी श्रद्धा है कि भगवान श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। यहाँ शबरी माता का मंदिर भी है।