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WORLD ENVIRONMENT DAY 2022: यहां ग्रामीण महिलाएं कर रही जंगल की पहरेदारी
बिहार में पर्यावरण संरक्षण में अब ग्रामीण महिलाओं की सक्रिय भागीदारी दिख रही है। जमुई जिले के खैरा प्रखंड की ग्रामीण
महिलाओं ने जंगल और जंगल के पेड़ों को कटने से बचाने के लिए एक अनोखे प्रयास की शुरूआत की है। वर्ष 2002 से
ग्रामीण महिलाओं द्वारा शुरू किए गए इस प्रयास के जरिए ग्रामीणों में पर्यावरण संरक्षण (Environment
Protection) के प्रति जागरूकता बढ़ी है। ये महिलाओं हाथ में डंडे लिए जंगलों की पहरेदारी कर रही हैं।
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ग्रामीण बताते हैं कि खैरा प्रखंड के मंझियानी, सुअरकोट, भगरार, झियातरी और ललकीटांड गांव के पास फैले जंगली क्षेत्रों में
साल, आसन, बांस, करंज, महुआ, बेर समेत कई पेड़ हैं। पूर्व में आजीविका चलाने के लिए इन जंगली फसलों की खेती और
कटाई के समय आस-पास के छोटे पेड़ों को काट दिया जाता था और जंगलों में आग भी लगा दी जाती थी। इन महिलाओं ने
इस जंगलों की बबार्दी देखकर जंगलों को बचाने और रक्षा करने के अनूठे प्रयास की शुरूआत की।
ग्रामीण बताते हैं कि जमुई जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्र खैरा प्रखंड के मंझियानी गांव की 52 वर्षीय चिंता देवी बीते दो
दशक से भी अधिक समय से पर्यावरण संरक्षण और वन्य जीव को बचाने के लिए काम करती आ रही हैं। चिंता देवी साल
2002 से ही जंगल में लगे पेड़ को बचाने के लिए काम करते आ रहीं हैं। पेड़-पौधों को बचाने के लिए उनका साथ इलाके की
लगभग 20 से 25 महिलाएं भी देती हैं। चिंता देवी के नेतृत्व में महिला गश्ती दल बना है, जो हाथ में डंडा लेकर और मुंह से
सिटी बजाकर इलाके के जंगल को बचाने का काम करती हैं।
चिंता देवी बताती हैं कि शरुआत में गांव के आसपास के जंगलों में लोग अपने फायदे के पेड़ को काट डालते थे, जिससे
जंगल उजड़ते जा रहे थे। इसके बाद मैंने लोगों को टोकना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि शुरुआत में तो उन्हें इस काम में
काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन बाद में लोगों का और वन विभाग का साथ भी मिला।
चिंता देवी के रहते इलाके के किसी भी जंगल से कोई पेड़ काट नहीं सकता, यहां तक कि कई बार जंगल से भटके जंगली
जानवर अगर गांव में आ जाते हैं तो उसे सुरक्षित फिर जंगल में छोड़ने में वन विभाग का सहयोग करती हैं। चिंता देवी भले
ही पढ़ना-लिखना नहीं जानती, लेकिन आज वे पर्यावरण को लेकर लोगों को पाठ पढ़ा रही हैं।
पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई पुरस्कार पा चुकी चिंता देवी का कहना है कि उनके परिवारवालों ने भी इस काम को करने से
कभी नहीं रोका। वे जंगलों में पेड़-पौधों को अपना संतान मानती हैं। उन्होंने कहा कि हम सभी महिलाएं जंगल की सुरक्षा के
लिए डंडे के सहारे जंगल के अंदर चार से पांच घंटे तक पहरेदारी करते हैं। ये महिलाएं ग्रामीणों को पर्यावरण संतुलन को
लेकर जागरूक भी करती हैं। इन महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे इस कोशिश की अब बाकी ग्रामीण प्रशंसा भी करते हैं और
इस कार्य में अपना योगदान भी देते हैं।
आज कई गांव की महिलाएं चिंता देवी से जुडकर जंगल बचाने में जुटी हैं। चिंता देवी बताती हैं कि इन जंगलों में 24 घंटे
महिलाएं पहरेदारी करती हैं। इन्हें वन विभाग द्वारा भी समर्थन मिल रहा है। ये महिलाएं अपने पास सीटी रखती हैं और
किसी भी तरह के जंगल को नुकसान करने के प्रयास में सीटी बजाया जाता है और सभी महिलाएं उस जगह पहुंच जाती हैं।
जमुई के वन प्रमुडल पदाधिकारी पीयूष वर्णवाल ने बताया कि चिंता देवी बीते कई वर्षों से जंगल के पेड़ और वन्य जीव को
बचाने के लिए काम करती आ रहीं हैं। वे पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई बार सम्मानित भी हो चुकी हैं। वह जंगल को
बचाने के लिए उस इलाके में और भी कई लोगों को जागरूक करती हैं। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण को लेकर किए गए
उनके कार्य सराहनीय तो हैं ही इनसे कई लोग इसे सीख भी रहे हैं।