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आज आंवले के पेड़ के नीचे खाना खाने का है विशेष महत्व, पढ़े इसका महत्व
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी या अक्षय नवमी के नाम से भी जाना जाता है। आंवला नवमी आज 2 नवंबर, के दिन पड़ रही है। ग्रंथों के मातनुसार त्रेतायुग का आरंभ इसी दिन से हुआ था। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विधान है। अक्षय का अर्थ है, जिसका क्षरण न हो। कहते हैं इस दिन किए गए शुभ कार्यों का फल अक्षय रहता है। इतना ही नहीं, ये मान्यता भी है कि इसी दिन श्री कृष्ण ने कंस के विरुद्ध वृंदावन में घूमकर जनमत तैयार किया था। इसलिए इस दिन वृंदावन की परिक्रमा करने का विधान है। आइए जानते हैं कि इस वर्ष आंवला नवमी पर पूजा का मुहूर्त क्या है?
पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि का प्रारंभ 01 नवंबर रात को 11बजकर 04 मिनट पर शुरू होगी। इसका समापन 02 नवंबर को रात 09 बजकर 09 मिनट पर होगा। व्रत के लिए उदयातिथि मान्य होती है, ऐसे में इस वर्ष आंवला नवमी या अक्षय नवमी का व्रत 02नवंबर दिन शुक्रवार को रखा जाएगा।
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आंवले के पेड़ के नीचे खाना बनाकर खाने का विशेष महत्व
अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे खाना बनाकर खाने का भी विशेष महत्व है। अगर आंवले के पेड़ के नीचे खाना बनाने में असुविधा हो तो घर में खाना बनाकर आंवले के पेड़ के नीचे जाकर पूजा करने के बाद भोजन करना चाहिए। खाने में खीर, पूड़ी और मिठाई हो सकती है। दरअसल, इस दिन पानी में आंवले का रस मिलाकर स्नान करने की परंपरा भी है। ऐसा करने से हमारे आसपास से नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है और सकारात्मक ऊर्जा और पवित्रता बढ़ती है, साथ ही यह त्वचा के लिए भी बहुत फायदेमंद है। इसके बाद पेड़ की जड़ों को दूध से सींचकर उसके तने पर कच्चे सूत का धागा लपेटना चाहिए। और फिर रोली, चावल, धूप दीप से पेड़ की पूजा करें। आंवले के पेड़ की 108 परिक्रमाएं करने के बाद कपूर या घी के दीपक से आंवले के पेड़ की आरती करें। इसके बाद आंवले के पेड़ के नीचे ब्राह्मण भोजन भी कराना चाहिए और आखिर में खुद भी आंवले के पेड़ के पास बैठकर खाना खाएं। घर में आंवले का पेड़ न हो तो किसी बगीचे में आंवले के पेड़ के पास जाकर पूजा दान आदि करने की परंपरा है या फिर गमले में आंवले का पौधा लगाकर घर मे यह काम पूरा कर लेना चाहिए।
सर्वप्रथम मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है इस दिन
आंवला नवमी के दिन सर्वप्रथम मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। एक पौराणिक कथा के अनुसार माता लक्ष्मी एक बार पृथ्वीलोक पर भ्रमण के लिए आईं. यहां आकर उन्हें भगवान विष्णु और शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। ऐसे में उन्हें ध्यान आया कि तुलसी और शिव के स्वरुप बैल के गुण आंवले के वृक्ष में होते है। इसमें दोनों का अंश है, इसलिए मां लक्ष्मी ने आंवले को ही शिव और विष्णु का स्वरूप मानकर पूजा की थी। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर दोनों देव एक साथ प्रकट हुए। लक्ष्मी जी ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु जी और भगवान शिव को खिलाया. उसी के संदर्भ में हर साल कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन आंवला के पेड़ की पूजा की जाती है।