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प्रदोष व्रत : भगवान शिव की पूजा व व्रत रखने से पूरी होती हैं मनोकामनाएं
हिंदू धर्म में कई खास व्रत हैं जिनमें से एक है प्रदोष व्रत। ये व्रत महीने में दो बार आता है। एक शुक्ल पक्ष और दूसरा कृष्ण पक्ष। इस व्रत में भगवान शिव की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि यह प्रदोष व्रत करने से जातक के सभी पाप धुल जाते हैं और उन्हें शिव धाम की प्राप्ति होती है। इस बार बुधप्रदोष व्रत 10 मार्च यानी बुधवार को है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष व्रत के दिन विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करने और व्रत रखने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कहा जाता है कि इस व्रत को रखने से दो गायों के दान के बराबर फल मिलता है। बात करते हैं मुहूर्त और पूजा विधि की –
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शुभ मुहूर्त
तिथि प्रारम्भ: 10 मार्च बुधवार, दोपहर 02 बजकर 40 मिनट से
तिथि समापन: 11 मार्च गुरुवार, 02 बजकर 39 मिनट तक
पूजन सामग्री
धूप, दीप, घी, सफेद पुष्प, सफेद फूलों की माला, आंकड़े का फूल, सफेद मिठाइयां, सफेद चंदन, सफेद वस्त्र, जल से भरा हुआ कलश, कपूर, आरती के लिए थाली, बेल-पत्र, धतुरा, भांग, हवन सामग्री, आम की लकड़ी।
व्रत की विधि
प्रदोष व्रत के दिन व्रती को प्रात:काल उठकर नित्य क्रम से निवृत हो स्नान कर शिव जी का पूजन करना चाहिए। पूरे दिन मन ही मन “ॐ नम: शिवाय ” का जप करें। पूरे दिन निराहार रहें।
त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल में यानी सूर्यास्त से तीन घड़ी पूर्व, शिव जी का पूजन करना चाहिए। प्रदोष व्रत की पूजा संध्या को 4:30 बजे से लेकर 7:00 बजे के मध्य की जाती है। इस दिन व्रती को चाहिए कि संध्या में पुन्हा स्नान कर स्वच्छ श्वेत वस्त्र धारण कर लें। पूजा स्थल अथवा पूजा गृह को शुद्ध कर लें। चाहे तो शिव मंदिर में भी जा कर पूजा कर सकते हैं। पांच रंगों से रंगोली बनाकर मंडप तैयार करें। पूजन की सभी सामग्री एकत्रित कर लें। कलश अथवा लोटे में शुद्ध जल भर लें। कुश के आसन पर बैठ कर शिव जी की पूजा विधि-विधान से करें। “ॐ नम: शिवाय” बोलते हुए शिव जी को जल अर्पित करें। इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर भगवान शिव का ध्यान करें।