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21वां कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) आ गया है, ऐसे में एक ऐसे लाल की कुर्बानी बार-बार याद आती है, जिन्होंने पहली शहादत पाई थी। बात कर रहे हैं हिमाचल प्रदेश के पालमपुर (Palampur in Himachal) से संबंध रखने वाले कैप्टन सौरभ कालिया (Captain Saurabh Kalia) की। जिस वक्त वह शहीद हुए तो उन्हें अभी बतौर कैप्टन तैनाती मिले महीना ही हुआ था,उन्होंने अपना पहला वेतन तक नहीं लिया था। भारतीय सेना की 4 जाट रेजिमेंट के कैप्टन सौरभ कालिया ने ही सबसे पहले कारगिल में पाक के नापाक इरादों की जानकारी भारतीय सेना को दी थी। 5 मई, 1999 की रात पांच साथियों के साथ बजरंग पोस्ट में पेट्रोलिंग करते हुए सौरभ कालिया को पाकिस्तानी घुसपैठियों की सूचना मिली थी।
कैप्टन कालिया ने साथियों के साथ कूच किया तो घात लगाकर बैठे घुसपैठियों ने पांचों को घायल अवस्था में पकड़ लिया था। फिर बंधक बनाकर 22 दिन तक यातनाएं दी थीं और तीन हफ्ते बाद उनकी पार्थिव देह क्षत-विक्षत हालत में भारतीय सेना के हवाले कर दी। कैप्टन कालिया के साथियों में बनवारी लाल, मूला राम, नरेश सिंह, भीखा राम और अर्जुन राम शामिल थे। परिजनों को वीर जवान की पार्थिव देह 9 जून, 1999 को क्षत-विक्षत हालत में सौंपी गई थी। उस वक्त से लेकर उनके पिता अपने स्तर पर न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं। कारगिल युद्ध के 21 वर्ष बीतने के बाद भी परिजनों को लाडले पर किए अत्याचारों के खिलाफ न्याय नहीं मिल पाया है। शहीद कैप्टन कालिया के पिता डॉ एनके कालिया (Dr. NK Kalia) और माता विजय कालिया को इस बात का दुख है कि केंद्र सरकार ने मामले को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक नहीं पहुंचाया।
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