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हिमाचल का छरमा Indian Army की बनेगा दवा, फ्री क्लीनिक रिसर्च का काम पूरा
हिमाचल (Himachal) का छरमा भारतीय सेना (Indian Army) की दवा बनने जा रहा है। इसके क्लीनिक रिसर्च का काम पूरा कर लिया गया है। छरमा की दवा से फौजियों को हाई अल्टीट्यूड में होने वाली ऑक्सीजन की कमी, कम तापमान और वातावरण को कम समय में अनुकूल बनाने में मदद मिलेगी। यानी हाई एल्टीट्यूड वाले सीमावर्ती इलाकों (High altitude areas) में ड्यूटी देने वाले जवानों को होने वाली समस्याओं से लाहुल (Lahul) का छरमा निजात दिलाएगा। इस बाबत पिछले लंबे समय से रिसर्च चली आ रही है, अब जाकर इसमें सफलता मिलने की आस बंधी है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) इस पर काम कर रहा है।
वर्ष 2007-08 में मिली थी मंजूरी
वर्ष 2000 में डीआरडीओ व हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में एक एमओयू साइन हुआ था। कुछ साल स्टडी के बाद डीआरडीओ ने चरक नाम से एक प्रोजेक्ट तैयार किया और इसे 2007-08 में मंजूरी मिली। प्रथम चरण में दवा को फ्री क्लीनिक रिसर्च में परीक्षण किया, जहां इसके बेहतर परिणाम आए। हाइपोक्सिया और स्नो बाइट्स पर डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ फिजियोलॉजी एंड अलाइड साइंसेज (डीआईपीएएस) काम कर रहा है। इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड एलाइड साइंसेज (आईएनएमएएस) दिल्ली ने रेडिएशन को लेकर छरमा (Charma) की क्रीम तैयार कर दी है। सीबकथॉर्न एसोसिएशन ऑफ इंडिया के महासचिव डॉ वीरेंद्र सिंह के मुताबिक फ्री क्लीनिक रिसर्च (Free clinic research) में इसका ट्रायल सफल रहा है। हाई एल्टीट्यूड में सैनिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए ये बेहतरीन साबित होगा।
262 तरह की दवाइयों में होता है छरमा का प्रयोग
लाहुल-स्पीति में सीबकथॉर्न (Seabuckthorn) यानी छरमा पाया जाता है, इसमें औषधीय गुण हैं। छरमा का प्रयोग 262 तरह की दवाइयों के उत्पादन में किया जाता है। छरमा पूरे प्रदेश में केवल लाहुल-स्पीति में ही मिलता है। लाहुल-स्पीति में कूट भी पाई जाती है। जुखाम, बुखार, जोड़ों के दर्द के इलाज के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा बक बीट, हॉप्स की खेती की जाती है।