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104 की उम्र में भी लेते हैं क्लास,75 साल से पेड़ के नीचे चल रहा है नंदा सर का अभियान
शिक्षा से बड़ा कोई दान नहीं होता, इसी मूल मंत्र के साथ बच्चों को ज्ञान बांटने में जुटे हैं 104 साल के नंदा प्रस्थी( (Nanda Prasty)। उम्र के जिल पड़ाव में लोग आराम करते हैं उस उम्र में नंदा सर मां सरस्वती का प्रसाद बांट रहे हैं। ओडिशा के रहने नंदा प्रस्थी पिछले 75 साल से बिना कोई पैसा लिए एक पेड़ के नीचे ( (Under the Tree)बच्चों को पढ़ा (Teaching Children) रहे हैं। पूरे इलाके में नंदा सर के नाम से मशहूर इस शख्स को चाहे आज थोड़ा ऊंचा सुनने लगा है,लेकिन उनका जज्बा कम नहीं हुआ है। वह अपने अभियान को आज भी उसी तरह आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं, जैसा कि 75 साल पहले था। ओड़िशा (Odisha)के जजपुर जिला के कंतिरा गांव (Kantira village in Jajpur) के नंदा प्रस्थी ने एक ही परिवार की तीन पीढ़ियों को शिक्षा दी है। भुवनेश्वर (Bhubaneswar)से करीब 100 किलोमीटर दूर रहने वाले नंदा सर की क्लास एक पेड़ के नीचे लगती है।
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कहते हैं कि गांव में कोई स्कूल नहीं था, इसलिए नंदा सर ने एक पेड़ के नीचे बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। नंदा सर का मानना था कि ज्ञान बांटना किसी की मदद करने जैसा है और इसलिए इस काम के कोई पैसे नहीं लिए जाने चाहिए। इसलिए आज भी वह (Without Charging a Single Penny) मुफ्त ही बच्चों को पढ़ा रहे हैं। कहते हैं कि पहले तो नंदा सर दो शिफ्ट में पढाया करते थे,सुबह बच्चे को व शाम को बड़े। कहते हैं कि नंदा सर को खुद अब याद नहीं रहा कि उन्होंने कब और किस साल में पढ़ाना शुरू किया। लेकिन उन्हें इतना याद है कि आजादी से पहले की बात है। उस वक्त गांव में साक्षर ना के बराबर हुआ करते थे।
कहते हैं कि नंदा सर सुबह 6 बजे उठ जाते हैं और साढ़े सात से नौ बजे तक क्लास लेते हैं। उनकी क्लास में 40 बच्चे आते हैं। सभी का नाम गांव के स्कूल में लिखा हुआ है लेकिन फिर भी वह नंदा सर के पास हर रोज़ पढ़ने आते हैं। जिस पेड़ के नीचे नंदा सर पढ़ाते थे, अब वहां एक मंदिर बना दिया गया है। इसी मंदिर में नंदा सर (Nanda Sir) बच्चों को पढ़ाते हैं। इसका निर्माण लगभग सात साल पहले हुआ है। अब हर तरह के मौसम में बिना किसी रुकावट कक्षाएं चलती हैं। कोरोना महामारी (Corona epidemic) में कुछ दिनों के लिए कक्षाएं बंद हुई थीं लेकिन अब फिर से ये चालू हो गई हैं। नंदा सर ने अब तक किसी भी तरह की सरकारी मदद नहीं ली है। क्योंकि उनका उदेश्य सिर्फ दूसरों को शिक्षित करना है।