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पेड़ों को गाड़ियों के हॉर्न से होती है दिक्कत, ऐसे करते हैं शोर को महसूस
शहरों में लोगों को अक्सर ट्रैफिक के कारण काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ट्रैफिक (Traffic) में गाड़ियों के शोर से भी लोगों को काफी दिक्कत होती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ध्वनि प्रदूषण पेड़-पौधों को भी परेशान करता है। पेड़-पौधे भी ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) से काफी परेशानी होती है।
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अब आप सोच रहे होंगे कि पेड़-पौधों के कान नहीं होते हैं फिर भी उन्हें गाड़ियों के हॉर्न से कैसे दिक्कत होती है। आज हम आपको बताते हैं कि पेड़-पौधों को ध्वनि प्रदूषण का कैसे पता चलता है और उन पर इसका क्या असर होता है। रिपोर्ट्स के अनुसार, पौधों के कान नहीं होते, लेकिन उन्हें ध्वनि प्रदूषण महसूस होता है। गाड़ियों के के शोर से होने वाले कंपन से पेड़ों में तनाव की प्रतिक्रिया सूखा-अकाल के हालात में या मिट्टी के क्षारीय या भारी धातु से युक्त होने की तरह होती है।
अक्सर आपने देखा होगा कि सड़क के किनारे पेड़-पौधे लगाए जाते हैं, जिसे ग्रीन मफलर कहा जाता है। दरअसल, सड़क के किनारे लगे ये पौधे ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने का काम करते हैं। पौधे लोगों को परेशान करने वाले उच्च आवृत्तियों के ध्वनियों को भी आसानी से रोकते हैं। पेड़ अपनी शाखाओं और पत्तों की मदद से ध्वनि तरंगों को अवशोषित करते हैं, जिससे ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव कम किया जा सकता है।
वहीं, एक रिसर्च में बताया गया है कि पेड़-पौधों की कुछ प्रजातियां इस शोर से निपटने का मैकेनिज्म विकसित कर सकती हैं। इसके लिए एक तरह के पौधों को दो अलग-अलग माहौल में उगाया गया, जिसमें एक पौधे को ट्रैफिक से निकलने वाले साउंड के बीच रखा गया और दूसरे पौधे को शांत माहौल में रखा गया। इसके बाद कुछ दिन के शोध के बाद पता चला कि पौधों पर सीधा असर देखा जाता सकता था।
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रिसर्च से पता चला है कि पौधों में हाइड्रोजन पेरोक्साइड और मैलोनडियाल्डिडाइड जैसे रसायनों की ज्यादा मात्रा तनाव का संकेत दे रहा था। दरअसल, शोर के बीच उग रहे पौधे में मैलोनडियाल्डिडाइड काफी ज्यादा था, जोकि ध्वनि प्रदूषण की वजह से था। इसके अलावा शोर में उगे पौधे में हार्मोंस की कमी भी देखी गई और पौधे की पत्तियों का वजन भी कम पाया गया।
विशेषज्ञों का कहना है कि पौधे म्यूजिक की एनर्जी को काफी पसंद करते हैं और इससे पौधों की ग्रोथ में सामान्य से ज्यादा बढ़ोतरी होती है। इसके अलावा इससे पौधों में सेंस विकसित होती हैं, जिससे वो पानी ढूंढने की कोशिश करते हैं और इससे उनके ग्रोथ पर असर पड़ता है।