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अब जूस पीने से पहले सोचना पड़ेगा दस बार, पराठों के साथ दही खाने पर कटेगा GST
Last Updated on July 1, 2022 by sintu kumar
भारत में आज से सिंगल यूज प्लास्टिक (Single Use Plastic) का इस्तेमाल पूरी तरह से प्रतिबंधित हो गया है। केंद्र सरकार के इस फैसले की वजह से पैक्ड जूस, सॉफ्ट ड्रिंक्स और डेयरी प्रोडक्ट बनाने और बेचने वाली कंपनियों को तगड़ा झटका लगा है। आज से बेवरेज कंपनियां प्लास्टिक स्ट्रॉ (Plastic Straw) के साथ अपने प्रोडक्ट को नहीं बेच पाएंगी।
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गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने कूड़ा-करवट वाले सिंगल यूज प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए ठोस कदम उठाए हैं। वहीं, आज से प्लास्टिक के साथ ईयर-बड, गुब्बारों के लिए प्लास्टिक स्टिक, प्लास्टिक के झंडे, कैंडी स्टिक, आइसक्रीम स्टिक, सजावट के लिए थर्मोकोल प्लेट, कप, कांटे, गिलास, चम्मच आदि जैसी वस्तुओं के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लग गया है।
जानकारी के अनुसार, अमूल, मदर डेयरी और डाबर जैसी बड़ी कंपनियों ने सरकार से अपने फैसले को कुछ समय के लिए टाल देने का निवेदन किया था। देश के सबसे डेयरी समूह अमूल (Amul) ने कुछ दिन पहले सरकार को पत्र लिखकर प्लास्टिक स्ट्रॉ पर लगने वाले प्रतिबंध को टालने का अनुरोध किया था। अमूल ने कहा था कि सरकार के इस फैसले से दुनिया के सबसे बड़े दूध उत्पादक देश के किसानों और दूध की खपत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
बता दें कि भारत में सबसे बड़ा कारोबार 5 रुपए से 30 रुपए के बीच की कीमत वाले जूस और दूध वाले प्रोडक्ट्स का है। अमूल, पेप्सिको, कोका-कोला, मदर डेयरी जैसे तमाम कंपनियों के पेय पदार्थ प्लास्टिक स्ट्रॉ के साथ ग्राहकों तक पहुंचते हैं। इसी कारण सिंगल यूज प्लास्टिक पर लगने वाले बैन से बेवरेज कंपनियां परेशान हैं। अब सरकार ने कंपनियों से वैकल्पिक स्ट्रॉ पर स्विच करने को कह दिया है।
इसी कड़ी में पारले एग्रो, डाबर और मदर डेयरी जैसे डेयरी प्रोडक्ट बनने वाली कंपनियां पेपर स्ट्रॉ की इंपोर्ट शुरू कर चुकी हैं। हालांकि, प्लास्टिक स्ट्रॉ के मुकाबले पेपर स्ट्रॉ की लागत अधिक पड़ रही है, लेकिन उत्पादों की बिक्री जारी रखने के लिए कंपनियां इसका सहारा ले रही हैं।
ये होता है सिंगल यूज प्लास्टिक
सिंगल यूज प्लास्टिक यानी वो प्लास्टिक जो एक बार इस्तेमाल करने का बाद फेंक दिया जाता है। सिंगल यूज प्लास्टिक को रिसाइकिल नहीं किया जा सकता है। ज्यादातर सिंगल यूज प्लास्टिक को जला दिया जाता है या फिर जमीन के नीचे दबा दिया जाता है। जिस कारण ये पर्यावरण को लंबे समय तक नुकसान पहुंचाता है।