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हिमाचल में कुल देवी को माना जाता है कुल की तारक
Last Updated on September 29, 2022 by sintu kumar
कांगड़ा। हिमाचल (Himachal) देव भूमि है। यहां हर संस्कार देवी-देवताओं (Gods and Goddesses) के आह्वान से ही संपूर्ण होता है। चाहे छोटा सा संस्कार ही क्यों ना निभाना हो मगर उसके शुरूआत पावन तरीके से की जाती है। हिमाचल में प्रमुख शक्तिपीठों को अगर छोड़ भी दें तो इस धरती पर अन्य इतने देव-देवता हैं जिनकी गिनती तक नहीं हो सकती। प्रमुख शक्तिपीठ तो लाइमलाइट में हैं मगर इन देवी-देवताओं को उभारने की आवश्यकता है। यहां हर घर की अपनी कुल देवी होती है। किसी भी संस्कार के निवर्हन (performance of rituals) के लिए सबसे प्रथम कुलदेवी को निमंत्रण देना होता है। इसके कोई शुभ मुहूर्त निकाल कर घर का मुखिया पूजा-अर्चना कर माता को निमंत्रण देता है और संस्कार को अच्छे तरीके संपन्न होने का वरदान मांगता है। अगर ऐसा ना किया जाए तो देवी उस पर कुपित हो सकती है और उसे कष्टों से गुजरना पड़ सकता (Go through hardships) है।
इसलिए इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि शादी-विवाह का समारोह संपन्न करने के लिए सबसे पहले कुलदेवी को याद करना बहुत जरूरी होता है। स्थानीय भाषा में इसे कुलज कहा जाता है। इस कुलज के लिए स्पेशल लकड़ी की एक चौकी बनाई होती है। इस चौकी में कुलज देवी को विराजमान किया जाता है और उसकी आराधना की जाती है। इस कुलज के आसपास अन्य मूर्तियां (Other Sculptures) भी स्थापित की जाती है और पूजा-अर्चना करने की क्रिया घर का मुखिया करता है। यह मुखिया वयोवृद्ध पुरुष भी हो सकता है और महिला भी। वहीं समारोह में बुलाया गया पंडित भी मंत्रों का उच्चारण कर मां कुलदेवी का आह्वान करता है और घर में सुख-शांति की कामना करता है। कुल देवी के पूजन का शादी-विवाह में तो विधान है ही, मगर मुंडन संस्कार में भी कुलदेवी का पूजन किया जाता है।
हिमाचल में अधिकतर मुंडन संस्कार (Mundan Sanskar) कुल देवी के पूजन और आशीर्वाद से ही संपूर्ण किए जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि यह कुल देवी ही समस्त कुल का संचालन करती है। वर्तमान पीढ़ी से लेकर आने वाली पीढ़ी तक यही कुल देवी कुल का संचालन करती है और उसे आगे बढ़ने के लिए आशीर्वाद देती है। पिछले पुरखों ने भी कुलदेवी का पूजन किया था और वर्तमान पीढ़ी भी उसे उसी प्रकार आदर-सम्मान देती है। कहीं-कहीं तो कुल देवी के बड़े सुंदर मंदिर भी बनाए जाते हैं और हर साल वहां भंडारे आदि का आयोजन भी किया जाता है। कहीं-कहीं सामूहिक कुल देवी भी होती है जो कई सारे परिवारों की आस्था की प्रतीक होती हैं। मां ब्रजेश्वरी (Maa Bajreshwari) भी कई परिवारों की कुलदेवी मानी जाती है और वे परिवार हर संस्कार का निहर्वन मां के आशीर्वाद से ही संपूर्ण करवाते हैं। नवरात्र और अन्य मौकों पर मुंडन संस्कार यहां बहुत मात्रा में करवाए जाते हैं।
वहीं किसी संस्कार के अवसर पर माता के लिए मीठे पकवान बनाए जाते हैं। इनमें हलवा, पूरी आदि शामिल होते हैं। लाल रंग की डोरी (red string) से मां को सूत्रबद्ध किया जाता है। चंदन रौली का टीका लगाया जाता है। तांवे के लौटे और दूब से शिष्टाचार निभाया जाता है। समस्त परिवार मां के आगे शीश नवाकर अपनी सुख-समृद्धि के लिए कामना करता है। वहीं कुल का वयोवृद्ध कुल की सुरक्षा और विकास के लिए मां से आशीर्वाद मांगता है। किसी प्रकार की नाराजगी होने पर कुल देवी खेल के माध्यम से बताती है। यदि कोई त्रुटि हो तो क्षमा याचना करते हुए उसे पूरा भी किया जाता है। शादी विवाह की हर रस्म को संपूर्ण करवाने के लिए कुल देवी का आशीर्वाद लेना जरूरी होता है अन्यथा किसी अनिष्ट की आशंका रहती है। मगर अफसोस आजकल डिजीटल युग में युवा इस कद्र मस्त हो गए हैं कि ऐसे पुराने संस्कारों को तिलांजलि दे रहे हैं। वे ऐसा करना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं।