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नवरात्र में क्यों बोए जाते हैं जौ , क्या है इनका धार्मिक महत्व जानिए
Shardiya Navratri 2024: नवरात्र पर्व मां दुर्गा के उपासना व उनका आशीर्वाद पाने के लिए विशेष माना गया है। पवित्र मन से दुर्गा मां की आराधना करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। इस बार शारदीय नवरात्र 3 अक्टूबर से शुरू हो जा रहे हैं। नवरात्र के नौ दिनों में लोग अपने घर में अखंड ज्योति जलाते हैं। साथ ही मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा करते हैं। नवरात्र में कलश स्थापना और ज्वारे यानी जौ का बहुत अधिक महत्व होता है। नवरात्र के पहले दिन घटस्थापना यानी कलश स्थापना की जाती है साथ ही जौ बोए जाते हैं। कहा जाता है कि इसके बिना मां की पूजा अधूरी रह जाती है। कलश स्थापना के साथ जौ बोने की परंपरा बहुत पहले से चली आ रही है।
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जौ को भगवान ब्रह्मा का प्रतीक माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि की रचना की थी तो वनस्पतियों में जो फसल सबसे पहले विकसित हुई थी वो थी जौ । इसीलिए नवरात्र के पहले दिन घट स्थापना के समय जौ की सबसे पहले पूजा की जाती है और उसे कलश में भी स्थापित किया जाता है।
सृष्टि की पहली फसल होने के नाते जब भी देवी-देवताओं का पूजन या हवन किया जाता है तो जौ ही अर्पित किए जाते हैं। ये भी कहा जाता है कि जौ अन्न यानी ब्रह्मा के सामान है और अन्न का हमेशा सम्मान करना चाहिए। इसलिए पूजा में जौ का इस्तेमाल किया जाता है।
नवरात्र में कलश स्थापना के दौरान बोए गए जौ दो-तीन दिन में ही अंकुरित हो जाते हैं, लेकिन यदि ये ना उगे तो भविष्य में आपके लिए अच्छे संकेत नहीं है। ऐसी मान्यता है कि दो-तीन दिन बाद भी अंकुरित नहीं होते तो इसका मतलब ये है कि आपको कड़ी मेहनत के बाद ही उसका फल मिलेगा।
इसके अलावा यदि जौ के उग गए हैं लेकिन उनका रंग नीचे से आधा पीला और ऊपर से आधा हरा हो इसका मतलब आने वाले साल का आधा समय आपके लिए ठीक रहेगा, लेकिन बाद में आपको परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।
यदि आपका बोया हुआ जौ सफेद या हरे रंग में उग रहा है, तो ये बहुत ही शुभ माना जाता है। इसका मतलब ये होता है कि आपके द्वारा की गई पूजा सफल हो गई। आने वाला पूरा साल आपके लिए खुशियों से भरा होगा।