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Polythene का विकल्प बन कर उभरा बांस, किसानों को मिल रहा रोजगार
कांगड़ा। प्रदेश सरकार ने क़रीब दो दशक पूर्व राज्य में पॉलिथीन लिफाफों के बेतहाशा प्रयोग को देखते हुए इनके इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया था। सर्वविदित है कि प्लास्टिक का उपयोग हमारे पर्यावरण के लिए हानिकारक है। इसे देखते हुए देश की तमाम सरकारों के अलावा ग़ैर-सरकारी संगठन पॉलिथीन (Polythene) के स्थान पर अन्य पदार्थों से बने लिफाफों, थैलों और पैकिंग मेटीरियल के विकास को प्राथमिकता दे रहे हैं। परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं के समक्ष कई विकल्प उभर कर सामने आ रहे हैं। केन्द्र सरकार ने पॉलिथीन के विकल्प उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय बांस योजना बनाई है। बांस (Bamboo), पॉलिथीन के उपयोग को कम करने या पूरी तरह ख़त्म करने का एक अहम ज़रिया हो सकता है। बांस से कई तरह का उपयोगी सामान बनाया जा सकता है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य पॉलिथीन के उपयोग को कम करना या एकल-उपयोग वाले पॉलिथीन को पूरी तरह बंद करना है।
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बांस से निर्मित होने वाला सामान हमारे दैनिक जीवन में उपयोग होने वाली कई वस्तुओं का स्थान ले सकता है। वर्तमान में बांस से पानी की बोतलों और बेहद उम्दा फर्नीचर बनाया जा रहा है। इसके अलावा बांस से निर्मित हस्तकला उत्पादों को लोग काफ़ी पहले से पसन्द करते आ रहे हैं। दो दशकों से बांस से बने विभिन्न उत्पादों के निर्माण और व्यवसाय में संलग्न शाहपुर निवासी ब्रह्मु बताते हैं कि वह जानवरों से छोटे पौधों की सुरक्षा के लिए ट्री गार्ड से लेकर घर की रसोई में प्रयोग होने वाले तमाम तरह के बर्तन और सामान, सजावटी वस्तुएं, टोकरियां आदि बनाते हैं। हाथ से बनने वाले बांस के तमाम उत्पादों में समय भी लगता है और मेहनत भी।
पालमपुर स्थित कृषि उप निदेशक पीसी सैणी कहते हैं कि बरसात का मौसम बांस की रोपाई के अनुकूल होता है। कांगड़ा ज़िला (Kangra District) के चार विकास खंड़ों के किसानों को बांस के 15 हज़ार पौधे वितरित किए जा रहे हैं। एक कनाल भूमि पर बांस के चालीस पौधे लगाए जा सकते हैं। हिमाचल प्रदेश में बांस की मांग साल भर बनी रहती है। इसके मद्देनजर विभाग ने वर्ष 2020-21 के लिए एक कार्ययोजना बनाई है, जिसके अंतर्गत प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बांस मिशन योजना के तहत इस वर्ष में 90 हेक्टेयर क्षेत्र में 90 हज़ार पौधे लगाने का प्रावधान है। व्यक्तिगत भूमि पर 25 कनाल में एक हजार पौधे लगाने के लिए 50 प्रतिशत या अधिकतम 25 हज़ार रुपए की राशि का प्रावधान है। पीसी सैणी बताते हैं कि योजना के तहत बांस से संबंधित उद्योग लगाने के लिए बेरोज़गार युवाओं को प्रशिक्षण और आर्थिक सहायता देने का प्रावधान किया गया है। इस वित्त वर्ष के अंतर्गत ज़िला कांगड़ा से 1‐12 करोड़ रुपये की कार्ययोजना केंद्र सरकार को भेजी गई है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में कमज़ोर वर्ग के लोगों को आजीविका मुहैया करवाने में मदद मिलेगी।