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राधा अष्टमी व्रत करने से सारे पापों से मिलती है मुक्ति, जानें पूजा विधि
सनातन धर्म में भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की अष्टमी (Ashtami) की तिथि को भगवान श्रीकृष्ण की प्रिय राधा रानी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। यह दिन बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। श्री कृष्ण की प्रिय राधा रानी की पूजा और व्रत से जुड़ा यह पर्व श्रीकृष्ण जन्मोत्सव से ठीक 15 दिन बाद आता है। बात की जाए इस साल की तो यह व्रत 11 सितंबर 2024, बुधवार के दिन मनाया जाएगा। माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पूजा और उनके लिए जन्माष्टमी पर रखा जाने वाला व्रत राधाष्टमी की पूजा के बगैर अधूरा माना जाता है। अगर आप पहली बार इस व्रत को करने जा रहे हैं तो पूजा की पूरी विधि जान लें।
राधा अष्टमी व्रत की पूजा विधि
सबसे पहले आपको 11 सितंबर 2023 की सुबह सूर्योदय से पहले उठना चाहिए। राधाष्टमी (Radha Ashtami) व्रत वाले दिन प्रातःकाल स्नान-ध्यान करने के बाद भगवान सूर्य को अर्घ्य दें और उसके बाद श्री राधे के व्रत को विधि-विधान से करने का संकल्प लें। इसके बाद पूजा घर में राधा रानी की प्रतिमा या फोटो को पवित्र जल से शुद्ध एवं साफ कर लें। इसके बाद उनके आगे एक मिट्टी या तांबे के कलश में जल सिक्के और आम्रपल्लव रखकर उस पर नारियल रखें।
राधा रानी (Radha Rani) की फोटो या प्रतिमा को पीले कपड़े से बने आसन पर रखना चाहिए और उसके बाद पंचामृत से स्नान करवाएं। इसके बाद एक बार फिर उन्हें जल चढ़ाएं और पुष्प, चंदन, धूप, दीप, फल आदि अर्पित करके उनकी विधि-विधान से पूजा और श्रृंगार करें। राधा रानी के व्रत में उन्हें भोग लगाने के बाद भगवान श्रीकृष्ण की भी विधि-विधान से पूजा करें और उन्हें भोग में फल और मिठाई के साथ तुलसी जल जरूर चढ़ाएं। इसके बाद राधा रानी के मंत्र का जाप या उनके स्तोत्र का पाठ करें। पूजा के अंत में श्री राधा रानी और भगवान श्रीकृष्ण की आरती करें और सभी को प्रसाद बांटें और खुद भी ग्रहण करें।
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व्रत का महत्व
हिंदू धर्म की परंपरा में श्री कृष्ण जी की प्रिय राधा रानी जी की पूजा एवं व्रत का बहुत ज्यादा महत्व (Importance) माना गया है। जो भी पूरी श्रद्धा भावना के साथ इस व्रत को करता है तो उसके जीवन के सभी पाप दूर हो जाते हैं और उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
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