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कांगड़ा को भी साध गए सुक्खू
सुक्खू दो शब्द नहीं अगर गहराई में जाएं तो इसके मायने उतने ही गहरे हैं, जितनी लंबी राजनीति की उनकी पारी हो चली है। यूं ही सुखविंदर सिंह सुक्खू सबको पीछे छोड़कर सीएम की कुर्सी तक नहीं पहुंच गए। यहां तक पहुंचने के बाद जिस तरह से उन्होंने एक साल की पारी खेली है,उससे अपने तो अपने विपक्ष वाले भी आसानी से समझ नहीं पाए। लेकिन सुक्खू ने नाबाद 365 दिन पूरे किए तो आज सिक्सर के तौर पर कांगड़ा को भी साध लिया। ये सुक्खू का राजनीतिक करिश्मा ही कहा जाएगा कि एक साल तक कांगड़ा-कांगड़ा चिल्लाने वालों को चुप करवाकर अब 365 दिन बाद यादवेंद्र गोमा के नाम का मास्टर स्ट्रोक खेल दिया।
कांगड़ा को साध लिया तो अनुसूचित जाति को भी अपना बना लिया। कांगड़ा को पहले ओबीसी के नाम पर चौधरी चंद्र कुमार पहली ही खेप में अपने साथ जोड़ लिया था तो अब यादवेंद्र गोमा को कुर्सी देकर उनकी जाति को भी मान दे दिया। गोमा से पहले सोलन से ताल्लुक रखने वाले अनुसूचित जाति के ही कर्नल धनीराम शांडिल कैबिनेट में जगह बनाए हुए हैं। अब यादवेंद्र गोमा भी झंडी वाले हो गए। सवाल उठाने वाले तो अभी भी उठाते रहेंगे लेकिन कांगड़ा में इससे बेहतर कंबीनेशन नहीं हो सकता,चूंकि कैबिनेट लिमिट की बंदिशें यहीं तक की अनुमति देती हैं। कैबिनेट में राजपूत तो पहले से ही सीएम सुक्खू समेत पांच-पांच हैं। अब डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री के अलावा एक और ब्राह्मण बिलासपुर जिला से राजेश धर्माणी भी कैबिनेट में शामिल हो गए हैं। पर हम बात यहां फिर से कांगड़ा की करेंगे तो ये रणनीतिक कदम सीएम सुक्खू का कहा जा सकता है कि लोकसभा चुनाव से पहले सबको शांत कर दिया। अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाले कांगड़ा जिला के किशोरी लाल पहले से ही सरकार में सीपीएस की कुर्सी पर बैठे हुए हैं। इसके साथ ही कांगड़ा में ब्राह्मण लीडरशिप के तौर पर नगरोटा बगवां के विधायक आरएस बाली को पर्यटन निगम का चेयरमैन ही नहीं बनाया बल्कि स्वतंत्र प्रभार देकर कैबिनेट का रैंक भी दे रखा है। इसी तरह कांगड़ा से ही राजपूत समुदाय से ताल्लुक रखने वाले विशाल चंबियाल व संजय चौहान को चेयरमैन के पद से नवाजा हुआ है। इसलिए सुक्खू दो शब्द नहीं, इसके मायने अनेक हैं।