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हाईकोर्ट की मंजूरी के बिना सांसदों/विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले वापस नहीं लिए जा सकते: SC
Last Updated on August 10, 2021 by Sintu Kumar
सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court)ने मंगलवार को कहा कि संबंधित उच्च न्यायालय (High Court)की मंजूरी के बिना सांसदों और विधायकों के खिलाफ कोई भी आपराधिक मामला वापस नहीं लिया जा सकता है। एमिकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसरिया (Amicus Curiae Senior Advocate Vijay Hansaria)ने शीर्ष अदालत में एक रिपोर्ट पेश की। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि जनहित में सीआरपीसी की धारा 321 के तहत अभियोजन वापस लेने की अनुमति है और इसे राजनीतिक विचार के लिए नहीं किया जा सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सरकारों को उच्च न्यायालय की मंजूरी के बाद ही पूर्व या मौजूदा विधायकों के खिलाफ मामले वापस लेने की अनुमति दी जानी चाहिए। इसमें कहा गया है कि इस तरह के आवेदन अच्छे विश्वास में, सार्वजनिक नीति और न्याय के हित में किए जा सकते हैं न कि कानून की प्रक्रिया को बाधित करने के लिए।
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एमिकस ने मौजूदा और पूर्व सांसदों/विधायकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे में तेजी लाने से संबंधित एक याचिका में सिफारिश की थी। मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि धारा 321 के तहत मामलों को वापस लेने के संबंध में शक्ति के दुरुपयोग का मुद्दा हमारे सामने है। पीठ ने कहा, “उच्च न्यायालय की अनुमति के बिना सांसद / विधायक के खिलाफ कोई मुकदमा वापस नहीं लिया जाएगा।” पीठ में जस्टिस विनीत सरन और सूर्य कांत भी शामिल हैं।सुनवाई के दौरान अधिवक्ता स्नेहा कलिता हंसरिया को सहायता प्रदान कर रहीं थीं।
उन्होंने कहा कि यूपी सरकार ने संगीत सोम, कपिल देव, सुरेश राणा और साध्वी प्राची के खिलाफ मुजफ्फरनगर दंगा के मामलों सहित निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ 76 मामले वापस लेने की मांग की है।उन्होंने कहा, “उक्त समाचार रिपोर्ट के अनुसार, चारों ने एक समुदाय के खिलाफ भड़काऊ बयान दिया और धारा 188 आईपीसी (घातक हथियार से लैस गैरकानूनी सभा में शामिल होना), 353 आईपीसी (लोक सेवक को रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल) इत्यादि धाराओं के तहत आरोपी हैं। एमिकस क्यूरी की रिपोर्ट में कहा गया है, “ये मामले मुजफ्फरनगर दंगों से संबंधित हैं जिसमें 65 लोग मारे गए थे और लगभग 40,000 लोग विस्थापित हुए थे। 12 जनवरी, 2020 को एक अन्य समाचार रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी जिसमें कहा गया था कि सरकार ने ऐसे 76 मामलों को वापस लेने का फैसला किया है।”
–आईएएनएस